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________________ खवगसेढोए अट्ठममूलगाहाए पढमभासगाहा १६३ ६४४१. 'एक्कम्हि द्विदिविसेसे' समयाहियउदयावलियादो उवरि अण्णवरम्हि द्विविविसेसे उदयविदिदिदीए वा 'भवसेसगसमयपबद्धसेसाणि' केत्तियत्ताणि होति त्ति पुच्छिदे भवसेसयसमयपबद्धसेसाणि बहूणि होति त्ति तेसिं पमाणणिद्देसो कओ। 'भवसेसयसमयपबद्धसेसाणि' त्ति एदेण बहुवयणणिद्देसेण तेसि बहुसंखाविसेसिवपमाणणिद्देसोववत्तीदो। जइ वि एदेण सामण्णणिद्देसेण तेसिं बहुत्तमेत्तं चेव जाणाविदं तो वि 'वक्खाणादो विसेसपडिवत्ती होईनायादो एक्कम्मि ठिदिविसेसे उक्कस्सेण असंखेज्जाणि भवबद्धसेसाणि समयपबदसेसाणि च होंति त्ति घेत्तव्वं । तदो एक्कम्हि ठिदिविसेसे एक्कस्स वा समयपबद्धस्स सेसयं जहण्णेण एगपरमाणुमादि कादूण जावुक्कस्सेणाणंतपरमाणुपमाणं होदूण लगभइ। एवं दो-तिणि आदिकमेण गंतूण जावुक्कस्सेण पलिदोवमस्सासंखेज्जदिमागमेत्ताणं वा समयपबद्धाणं सेसयाणि जहण्णुक्कस्सेणेयाणंतपरमाणुपमाणाणि होदूण लभंति । एवं भवबद्धसेसयाणं पिणेदव्वमिदि गाहापुम्वद्ध सुत्तत्थसमुच्चओ। "णियमा अणुभागेसु च' एवं भणिदे ताणि भवबद्धसेसयाणि समयपबद्धसेसाणि च तम्हि टिदिविसेसे वट्टमाणाणि णिच्छयेणेव अणतेसु अणुभागेसु होति । कि कारणं? एयम्मि वि परमाणुम्मि जहण्णसत्तिपरिणवम्मि अणंताणताणमविभागपडिच्छेवाणमणुभागसण्णिदाणमुबलंभादो। संपहि एवं विहमेदिस्से गाहाए अत्थं विहासेमाणो विहासागंथमुत्तरं भणइ * विहासा। $ ४४२. गाहासुत्तणिट्टित्थविवरणं विहासा णाम । सा एण्हिमवहारिज्जदि ति वुत्तं होइ । ६४४१. 'एक्कम्मि द्विदिविसेसे' एक स्थितिविशेषमें अर्थात् एक समय अधिक उदयावलिसे ऊपर अन्यतर स्थितिविशेषमें या उदयके बाद दूसरो स्थिति भवबद्धशेष और समयप्रबद्धशेष कितने होते हैं ऐसी पृच्छा करनेपर भवबद्धशेष और समय प्रबद्धशेष बहुत होते हैं इस प्रकार उनके प्रमाणका निर्देश किया है, क्योंकि 'भवसेसय-समयपबद्धसे साणि' इस प्रकार इस चरण में किये गये बहुवचन निर्देशसे उनके बहुत संख्यायुक्त प्रमाणका निर्देश बन जाता है। यहां यद्यपि इस प्रकार किये गये सामान्य निर्देश द्वारा उनके बहुत्वसामान्यका ही ज्ञान होता है तो भी 'व्याख्यानसे विशेषकी प्रतिपत्ति होती है' इस न्यायके अनुसार एक स्थितिविशेषमें भवबद्धशेष और समय प्रबद्धशेष असंख्यात होते हैं ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए । इस कारण एक स्थितिविशेषमें एक समयप्रबद्धसम्बन्धी शेष जघन्यसे एक परमाणुसे लेकर उत्कृष्टसे अनन्त परमाणुप्रमाण तक होकर उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार दो, तीन आदिके क्रमसे जाकर उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण समयप्रबद्धोंके शेष जघन्यसे एक परमाणुसे लेकर उत्कृष्टसे अनन्त परमाणुप्रमाण होकर उपलब्ध होते हैं। इसी प्रकार भवबद्धशेषोंका भी कथन करना चाहिए। इस प्रकार यह गाथाके पूर्वार्धसम्बन्धी सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है। "णियमा अणुभागेसु च' ऐसा कहनेपर वे भवबद्धशेष और समयप्रबद्धशेष उसी स्थितिविशेष में निश्चयसे अनन्त अनुभागों में पाये जाते हैं, क्योंकि जघन्य शक्तिरूपसे परिणत एक भी परमाणुमें अनुभागसंज्ञक अनन्तानन्त अविभागप्रतिच्छेद पाये जाते हैं। अब इस प्रकार इस गथाके अर्थकी विभाषा करते हुए आगे विभाषा ग्रन्थका कथन करते हैं * अब इस भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। ६४४२. गाथासूत्रमें निर्दिष्ट किये गये अर्थका ब्योरेवार कथन करना विभाषा कहलातो
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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