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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे तत्थ ताव भवबद्धसेसस्स समयपबद्धसेंसस्स च सरूवविसेसजाणावणटुं तल्लक्खणणिद्देसमेव सुत्तसूचिदं पुठवं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भगह * समयपबद्धसेसयं णाम कि। $ ४४३. एवं पुच्छंतस्सायमहिप्पाओ-समयपबद्धसेससहवे जाणिदे पच्छा तस्विसय पमाणाविपरूवणा घडदे, णाण्णहा। तदो तस्सेव ताव सरूवणिद्देसो पुव्वमेत्य कायम्वो। तम्हि कीरमाणे केरिसं तं समयपबद्धसेसयं णाम, ण तस्स सरूवमम्हे जाणामो त्ति । एवं भवबद्धसेसस्स वि पुच्छाणुगमो कायव्वो, सत्तस्सेदस्स देसामासयभावेण पवुत्तिअब्भुवगमादो। संपहि एविस्से पुच्छाए णिण्णयविहाण?मुत्तरसुत्तावयारो * जं समयपबद्धस्स वेदिदसेसगं पदेसग्गं दिस्सइ, तम्मि अपरिसेसिदम्मि एगसमयेण उदयमागदम्मि तस्स समयपबद्धस्स अण्णो कम्मपदेसो वा पत्थि तं समयपबद्धंसेसगं णाम । ६४४४. एदस्स सत्तस्स अत्यविवरणं कस्सामो। तं जहा-जं समयपबद्धस्स कम्मदिदिअभंतरे जहाकम वेदिज्जमाणयस्स वेदिदसेसगं पदेसग्गं से काले पिल्लेवणाहिमुहं होदूण दोसइ तं समयपबद्धसेसयं णाम । संपहि एदस्सेव विसेसियूण परवणमिदमाह-'तम्हि अपरिसेसिवम्हि उदयमागम्हि' वेदिदसेसगे पदेसग्गे गिरवसेसमोकड्डियूण उदयम्मि संछुद्धे पुणो तस्स है। उसका इस समय कथन करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। उसमें सर्वप्रथम भवबद्धशेष और समयप्रबद्धशेषके स्वरूपविशेषका ज्ञान करानेके लिए पहले गाथासूत्र द्वारा सूचित हुए उनके अक्षणका निर्देश करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * समयप्रबद्धशेष किसे कहते हैं ? ६४४३. ऐसा पूछनेवालेका यह अभिप्राय है कि समयप्रबद्धशेषके प्रमाणका ज्ञान हो जानेपर बादमें उसका प्रमाण कितना है इत्यादि प्ररूपणा घटित होतो है, अन्यथा नहीं, इसलिए सर्वप्रथम उसीके स्वरूपका निर्देश करना चाहिए। उसके स्वरूपका निर्देश करनेपर उस समयप्रबद्धशेषका स्वरूप किस प्रकारका है, क्योंकि उसके स्वरूपको हम नहीं जानते। इसी प्रकार भवबद्धशेषके विषयमें भी पृच्छाका निर्देश करना चाहिए, क्योंकि इस सूत्रकी देशामर्षकरूपसे प्रवृत्ति स्वीकार की गयी है। अब इस पृच्छाका निर्णयका विधान करनेके लिए आगेके सूत्रका अवतार करते हैं * समयप्रबद्धका वेदन करनेके बाद जो प्रदेशपुंज दिखलाई देता है पूरे उसके एक समय द्वारा उदयमें आनेपर उस समयप्रबद्धका फिर कोई अन्य कर्मप्रवेश ( उदयमें आनेके लिए ) शेष नहीं रहता है उसे समयप्रबद्धशेष कहते हैं। ६४४. अब इस सूत्रके अर्थका स्पष्टीकरण करते हैं। वह जैसे-कर्मस्थितिके भीतर क्रमसे वेदन किये जानेवाले समयप्रबद्धका वेदन करनेके बाद जो प्रदेशपुंजशेष रहकर तदनन्तर समयमें निर्लेपनके अभिमुख होकर दिखाई देता है वह समयप्रबद्धशेष कहलता है। अब इसीका विशेष रूपसे कथन करनेके लिए सूत्रमें यह वचन कहा है-'तम्हि अपरिसेसदम्हि उदयमागदम्हि' अर्थात् वेदन करनेके बाद जो प्रदशपुंज शेष रहता है पूरे उसका अपकर्षण करके
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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