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अयधवलासहिदे कसायपाहुडे त्ति सण्णा । सो वुण समुदायप्पणाए एगो वि संतो सगावयवकम्मपदेसभेवप्पणाए बहुत्तमावण्णों त्ति बहुवयणणिद्देसो कओ।
६४३४. अधवा जाणासमयपबद्धाणेगसमयपबद्धावत्तीओ पडच्च तस्स बहत्तसंभवादो एसो बहुवयणंतणिद्देसो को दटुट्यो। तेसि 'सेसाणि' त्ति वुत्ते कम्मट्टिविकालभंतरे वेदिवसेसाणं कम्मपदेसाणं से काले सुद्धं पिल्लेविज्जमाणसवाणं गहणं कायव्वं । तवो एगसमयपबद्धस्स वा णाणासमयपबद्धाणं वा सेसगाणि 'कदि' केत्तियमेत्ताणि 'कदिसु. टिदिविसेसेसु' केत्तियमेत्तेसु दिदिभेदेसु संभवंति ति गाहापुव्वद्धे सुत्तत्थसंबंधो। एत्थ 'कदि' सद्दो गाहापच्छद्धट्टिदो अहिसंबंधेयत्वो। एत्थतण 'च' सद्देणावुत्तसमुच्चयटेण अणुभागविसया पुच्छा सूचिदा दट्ठम्या । तदो कम्मट्टिदिसम्भंतरे बद्धणाणेगसमयपबद्धाणं वेदिवसेसकम्मपरमाणवो से काले गिरवसेसं पिल्लेविज्जमाणसरूवा कदिसु दिदिविसेसेसु अणुभागविसेसेसु च केत्तियमेत्ता जहण्णक्कस्सेण संभवंति ति एसो गाहापुव्वद्ध सुत्तत्थसमुच्चयो।
६४३९. 'भवसेसयाणि कविस च' एवं भणिवे एक्कम्मि भवग्गहणे जेत्तियो कम्मपदेसपिंडो संचिदो तस्स भवबद्धसण्णा । सो च पुव्वं व णाणेगभवबद्धसंगहणटुं बहुवयणेण णिहिटो। तेण णाणेगभवबद्धाणं वेदिवसेसा कम्मपदेसा से काले गिरवसेसं णिल्लेविज्जमाणसरूवा कविसु ट्रिदिविसेसेस 'च' सद्दसूचिदाणभागविसेसेस केत्तियमेत्ता होंति ति गाहापच्छद्धे सुत्तत्थसंगहो। परन्तु वह समुदायकी विवक्षामें एक होता हुआ भो अपने अवयवरूप कर्मप्रदेशोंको भेदविवक्षामें बहुत्वको प्राप्त हो जाता है, इसलिए उक्त पदमें बहुवचनका निर्देश किया है।
६४३४. अथवा नाना समयप्रबद्धोंके एक-एक समयप्रबद्धकी आवृत्तिकी अपेक्षा उसका बहुतपना सम्भव होनेसे सूत्र में बहुवचनरूप निर्देश किया है ऐसा जानना चाहिये । उनके 'सेसाणि' ऐसा कहनेपर कर्मस्थितिप्रमाण कालके भीतर वेदे जानेके बाद जो शेष बचे हैं और जो तदनन्तर समयमें केवल निलेपित भावको प्राप्त होनेवाले हैं उनका ग्रहण करना चाहिये। इसलिए एक समयप्रबद्धके अथवा नाना समयप्रबद्धोंके 'कदि' अर्थात् कितने शेष रहते हैं वे 'कदिसु टिदिविसेसेस' अर्थात् कितने स्थितिसम्बन्धी भेदोंमें सम्भव हैं यह इस सूत्रगाथाके पूर्वार्धमें अर्थके साथ सम्बन्ध है। यहां गाथाके उत्तरार्धमें स्थित 'कति' शब्दका सम्बन्ध कर लेना चाहिये। तथा इस गाथामें जो 'च' शब्द आया है वह अनुक्त अर्थका समुच्चय करनेवाला होनेसे उस द्वारा अनुभागविषयक पृच्छा सूचित की गयी जाननी चाहिये । इसलिये कर्मस्थिति कालके भीतर जो नाना समयप्रबद्ध और एक समयप्रबद्ध बन्धको प्राप्त हुए हैं तत्सम्बन्धो वेदे जानेसे शेष बचे कर्म परमाण तदनन्तर समयमें निरवशेषरूपसे निर्लेपन भावको प्राप्त होते हुए कितने स्थितिविशेषोंमें
और कितने अनुभागविशेषोंमें कितने कर्म परमाणु जघन्य और उत्कृष्ट रूपसे सम्भव हैं यह गाथाके पूर्वार्धमें सूत्रका समुच्चय रूप अर्थ है ।
४३५. 'भवसेसयाणि च कदिसु' ऐसा कहनेपर एक भवग्रहणमें जितने कर्मप्रदेशपिण्डका संचय किया है उसकी भवबद्ध संज्ञा है। और उसका भी पहलेके समान नाना भवबद्ध और एक भवबद्ध कम पुंजका संग्रह करनेके लिये बहुवचनरूपसे निर्देश किया है। इसलिये नाना भवबद्ध और एक भवबद्ध कर्मपुंजके वेदे जानेके बाद जो कर्मप्रदेश शेष बचे वे तदनन्तर समयमें पूरी तरहसे निर्लेपनभावको प्राप्त होते हुए कितने स्थितिविशेषोंमें और 'च' पदसे कितने अनुभाग विशेषोंमें होते हैं यह इस गाथाके उत्तरार्धका समुच्चयरूप अर्थ है।