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खवगसेढोए अट्ठममूलगाहा संछुद्धासंछुद्धभावो लब्भदे । भवबद्धा पुण णियमा सव्वे चेव संछुद्धा बोद्धव्वा; ण तत्थ पयारंतरा संभवो त्ति एसो एदस्स भावत्थो। एवंविहो च एदिस्से गाहाए अत्थो पढमभासगाहाविहासावसरे चेव विहासिदो, तदो ण पुणो एण्हि विहासियव्वो ति पदुप्पाएमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* एदिस्से गाहाए अत्थो पढमभासगाहाए चेव परूविदो।
६४३१. कुदो ? तत्थ समयपबद्धाणं संछुद्धासंछुद्धभावगवेसणावसरे चेव भववद्धपरूवणाए वि सवित्थरमणुमग्गिदत्तादो। एवं सत्तमीए मूलगाहाए अत्थविहासा समत्ता।
* एत्तो अहमीए मूलगाहाए समुक्कित्तणा।
६४३२. सत्तमूलगाहाविहासणाणंतरमेत्तो अट्ठमीए मूलगाहाए जहावसरपत्ता समुक्कित्तणा कायव्वा त्ति वुत्तं होइ। (१४६) एगसमयपबद्धाणं सेसाणि च कदिसु द्विदिविसेसेसु ।
भवसेसगाणि कदिसु च कदि कदि वा एगसमएण ॥१९९।। ६४३३. एसा अट्टमी मूलगाहा अंतरकरणादो उवरिमवत्याए वट्टमाणस्स खवगस्स समयपबद्धसेसाणि च भवबद्धसेसाणि च केत्तियमेताणि कदिसु ठिदिविसेसेस संभवंति ति एवं विहस्स अत्यविसे पस्त णिण्णयविहाणट्ठमोइण्गा । संपहि एदिस्से अस्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा'एगसमयपबद्धाणं' एवं भणिदे एगसमयम्मि जेत्तिया कम्मपरमाणू बद्धा, तेसिमेगसमयपबद्धो क्षपकके पाये जाते हैं। परन्तु भवबद्ध सभी समयप्रबद्ध इस क्षपकके नियमसे संक्षब्ध जानने चाहिये । उनमें अन्य प्रकार सम्भव नहीं है यह इसका भावार्थ है। और इस प्रकारके इस गाथाके इस अर्थको प्रथम भाष्यगाथाको विभाषाके समय ही विभाषा कर आये हैं, इसलिये पुनः विभाषा नहीं करनी चाहिये । इस प्रकार प्ररूपणा करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* इस गाथासूत्रका अथं प्रथम भाष्यगाथामें ही प्ररूपित कर आये हैं।
६४३१. क्योंकि उस गाथासूत्रमें समयप्रबद्धोंके संभब्ध और असंक्षब्धभावकी गवेषणाके समय ही भवबद्ध समयप्रबद्धोंकी प्ररूपणाका भी विस्तारके साथ अनुमार्गण कर आये हैं। इस प्रकार सातवीं मूलगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त हुई।
* इससे आगे आठवीं मूलगाथाको समुत्कीर्तना करते हैं। .६४३२. सातवीं मूलगाथाकी विभाषा करनेके बाद आगे आठवीं मूलगाथाकी यथावसर प्राप्त समुत्कीर्तना करनी चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
(१४६) कितने एक और नाना समयप्रबद्ध शेष तथा नाना भवबद्ध शेष कितने स्थितिविशेषों और अनुभाग विशेषोंमें पाये जाते हैं। इसी प्रकार एक और नाना कितने समयप्रबद्ध शेष और भवबद्ध शेष एक स्थिति विशेषमें पाये जाते हैं। तथा एक समयसम्बन्धी एक स्थितिविशेषमें नाना और एक कितने समयप्रबद्ध शेष और भवबद्ध शेष पाये जाते हैं ॥१९९॥
६४३३. यह आठवीं मूलगाथा अन्तरकरणसे उपरिम अवस्थामें विद्यमान क्षपकके कितने समयप्रबद्ध शेष और भवबद्ध शेष कितने स्थितिविशेषोंमें सम्भव हैं इस प्रकारके अर्थविशेषका निर्णय करने के लिये अवतीर्ण हुई है। अब इसके अर्थकी प्ररूपणा करेंगे। वह जैसे—'एगसमयपबद्धाणं' ऐसा कहनेपर एक समय में जितने कर्म परमाणु बंधते हैं उनकी एक समयप्रबद्ध संज्ञा है।