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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * जं कोहपदेसग्गं संछुब्भमाणयं मायाए पढमकिट्टीए संपत्तं तं पदेसग्गं तत्तो आवलियादिक्कतं मायाए विदिय-तदियासु च किट्टीसु लोभस्स च पढमकिट्टीए संकमदि।
$ ४२२. जंतं पुव्वणिरुद्धं कोहसंजलणपदेसग्गं पुव्वुत्तपणालीए आगंतूण मायाए पढमसंगहकिट्टीए संकंतं तत्थ तदियावलियमेत्तकालमच्छियूण तदो चउत्थावलियपढमे समये अणंतरपरूविदणियमाणुल्लंघणेण संकामिज्जमाणं मायाए विदियतदियसंगहकिट्टीए लोभपढमसंगहकिट्टीए च संकमदि, तत्तो परं ताधे तहाविहसंकमणसत्तीए तत्थाणुवलंभादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसंगहो । जदो एवं तदो चउत्थी आवलिया दससु किट्टीसु जावा ति जाणावेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* एवं चउत्थी आवलिया दससु किट्टीसु त्ति भण्णइ ।
६ ४२३. गयत्थमेदं सुत्तं । संपहि तस्सेव पदेसग्गस्स पंचमावलियाए पवुत्तिविसेसजाणावणट्ठमुत्तरसुत्तावयारो
* जं कोहपदेसग्गं संछुब्भमाणं लोमस्स पढमकिट्टीए संपत्तं तदो आवलियादिक्कं लोभस्स विदिय-तदियासु किट्टीसु दीसइ ।
६४२४. जं तं कोहसंजलणपदेसग्गं पुवणिरुद्धं पुश्वुत्तपरिवाडीए लोभस्स पढमसंगहकिट्टीए संकामिदं तं तत्थ संकमणावलियमेत्तकालमच्छिय तदो पंचमावलियपढमसमए लोभस्स विविय
* जो क्रोधसंज्वलनका नवकबन्ध प्रदेशपुंज संक्रमित होकर मायासंज्वलन की प्रथम संग्रह कृष्टिमें प्राप्त हुआ है वह प्रदेशपुंज तत्पश्चात् एक आवलिप्रमाण काल जाकर मायासंज्वलनको दूसरी और तीसरी संग्रह कृष्टियोंमें तथा लोभसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिमें संक्रमित होत
४२२. जो पूर्वमें विवक्षित क्रोधसंज्वलका प्रदेशपुंज पूर्वोक्त प्रणालीसे आकर मायासंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिमें संक्रान्त हुआ है वह वहीं तीसरी आवलिप्रमाण काल तक रहकर पश्चात् चौथी आवलिके प्रथम समयमें अनन्तर कहे गये नियमका उल्लंघन किये बिना संक्रमण करता हुआ मायासंज्वलनको दूसरो और तीसरी संग्रहकृष्टिमें तथा लोभसंज्वलन को प्रथम संग्रह कृष्टिमें संक्रमण करता है, क्योंकि उससे आगे उस समय उसमें उस प्रकारकी संक्रमणशक्तिका अभाव है। इस प्रकार यह यहाँपर सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है। यतः ऐसा है, अतः चौथी आवलि दस संग्रह कृष्टियोंमें पायी जाती है इस प्रकार इस बातका ज्ञान कराते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* इस प्रकार चौथी आवलि दस संग्रह कृष्टियों में कही जाती है।
६४२३. यह सूत्र गतार्थ है। अब उसी नवप्रबन्ध प्रदेशपुंजके पांचवीं आवलिमें प्रवृत्ति विशेषका ज्ञान कराने के लिये आगेके सूत्रका अवतार कहते हैं
* जो क्रोध संज्वलनका नवकबन्ध प्रदेशपंज संक्रमित होकर लोभसंज्वलनको प्रथम कृष्टिको प्राप्त हुआ है वह तत्पश्चात् एक आवलिकालके बीतनेपर लोभसंज्वलनकी दूसरी और तीसरी संग्रह कृष्टियोंमें दिखाई देता है।
१४२४. जो वह क्रोधसंज्वलनका नवकबन्ध प्रदेशपुंज पूर्वमें विवक्षित किया था वह पूर्वोक्त परिवृद्धिके द्वारा लोभसंज्वलनकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें संक्रमित हुआ है वह वहां संक्रमणावलि प्रमाण काल तक रहकर पश्चात् पांचवीं आवलिके प्रथम समय में लोभसंज्वलनकी दूसरी और