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वगढीए चउत्थमूलगाहाए विदियमा सगाहा
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* एवं विदियावलिया चदुसु किट्टी दीसह ।
४१९. एदेण कारणेण विदियावलिया चदुसु किट्टीसु जादा त्ति वृत्तं होइ । एवमेत्तिएण पबंधेण विदियभासगाहाए अत्यविहासणं समानिय संपहि तदियभासगाहमणुच्चारिय विदियगाहत्थ संबंघेणेव तदत्यविहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
* तदो जं पदेसग्गं कोहादो माणस्स पढमकिट्टीए गदं तं पदेसग्गं तदो आवलिया पुण्णा माणस्स विदिय-तदियासु मायाए च पढमसंगह किट्टीए संकमदि ।
४२०. एतदुक्तं भवदि - पुग्वणिरुद्ध कोहसंजणपदेसगं माणस्स पढमसंगह किट्टीए विदियावलियमेत्तकालमच्छ्रिय पुणो तदियावलियपढमसमए समयाविरोहेण संकममाणं कुणमाणो तत्तों पहूडि आवलियमेत्तकालं पुण्वुत्तचदुसु संगहकिट्टीसु पुणो माणविदिय-तदियसंगहकिट्टीसु मायापढमसंगह किट्टीए च समुवलब्भद्द, ण तत्तो अण्णासु किट्टीसु तत्थ संकमणसत्तीए तक्कालमणुवभावोति । संपहि इममेवत्यमुवसंहारमुहेण परूदेमाणो इदमाह -
* एवं तदिया आवलिया सत्तसु किट्टीसु ति भण्णइ ।
$ ४२१. एवेण कमेण तबिया आवलिया सत्तसु किट्टीसु त्ति उवरिमगाहासुत्तावयवे भण्णमाणो अत्यो सुसंबद्धो त्ति भणिदं होइ । संपहि चउत्थावलियाए तस्स पवेसग्गस्स पवृत्तिविसेसावहारणद्वमुत्तरसुत्तारंभी
* इस प्रकार द्वितीय आवलि चारों संग्रहकृष्टियों में दिखाई देती है ।
४१९. इस कारण द्वितीय आवलि चारों संग्रहकृष्टियों में व्याप्त हो जाती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार इतने प्रबन्ध द्वारा दूसरी भाष्यगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त करके अब तीसरी भाष्य गाथाकी उच्चारणा करके दूसरी भाष्यगाथा के सम्बन्धसे ही उसके अर्थकी विभाषा करते हुए आगेके सूत्र प्रबन्धको कहते हैं
* इस प्रकार उक्त विधिसे जो प्रवेशपुंज क्रोधसंज्वलनसे मानसंज्वलनको प्रथम संग्रहकृष्टिको प्राप्त हुआ है वह प्रवेशपुंज तत्पश्चात् एक आवलि काल पूर्ण होनेपर मानसंज्वलनकी दूसरी ओर तीसरी तथा मायासंज्वलनकी प्रथम संग्रहकृष्टि में संक्रमित होता है।
६ ४२०. उक्त कथनका यह तात्पर्य है- पहले विवक्षित किया गया क्रोधसंज्वलनका प्रदेशपुंज मानसंज्वलन की प्रथम संग्रहकृष्टि में द्वितीय आवलि प्रमाण कालतक रहकर पुनः तीसरी आवलिके प्रथम समय में समय के अविरोधपूर्वक संक्रमण करता हुआ वहाँसे लेकर एक आवलिप्रमाण काल तक पूर्वोक्त चारों संग्रह कृष्टियों में पुनः मानसंज्वलनकी दूसरी और तीसरी संग्रह कृष्टियों में तथा मायासंज्वलन की प्रथम संग्रह कृष्टिमें पाया जाता है। उनसे अतिरिक्त अन्य संग्रह कृष्टियों में उसके संक्रमण करनेकी शक्ति उस कालमें नहीं पाई जाती। अब इसी अर्थका उपसंहार द्वारा कथन करते हुए इस सूत्र को कहते हैं
* इस प्रकार तीसरी आवलि सात संग्रह कृष्टियोंमें कही जाती है ।
६ ४२१. इस क्रमसे तीसरी आवलि सात संग्रह कृष्टियों में पायी जाती है यह उपरिम गाथा - सूत्र के प्रथम पादमें कहा जानेवाला अर्थ सुसम्बद्ध है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब चौथो आवलिमें उस प्रदेशपुंजकी प्रवृत्ति विशेषका अवधारण करनेके लिए आगे के सूत्रका आरम्भ करते हैं