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________________ १५४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे दसणादो। तदो विदियावलिया चदुसु चेव संगहकिट्टीसु होइ ति सिद्धं । 5 ४१५. संपहि एवंविहमेविस्से गाहाए अत्यं विहासेमाणो विहासागंयमुत्तर भणइ* विहासा। $ ४१६. सुगमं। * जं पदेसग्गं बज्झमाणयं कोधस्स तं पदेसग्गं सव्वं बंधावलियं कोहस्स पढमसंगहकीट्टीए दिस्सइ । ६ ४१७. कुदो ? कोहपढमसंगहकिट्टीसहवेण बद्धणवकबंधपदेसग्गस्स बंधावलियमेत्तकालं तत्थेवावट्ठाणं मोत्तूण पयारंतरासंभवादो। * तदो आवलियादिक्कतं तिसु वि कोहकिट्टोसु दीसइ माणस्स च पढमकिट्टीए । ६४१८. कि कारणं ? तत्थ बंधावलियाइक्कंतस्स तस्स पदेसग्गस्स वि विदियावलियपढमसमए पुष्वुत्तणियमवसेण संकममाणस्स कोहस्स तिसु संगहकिट्टीसु माणपढमसंगहकिट्टीए च समवट्ठाणस्स परिप्फुडमुवलंभादो। विशेषार्थ-उक्त दूसरी भाष्यगाथामें बध्यमान आवलिसे बन्धावलिका प्रहण किया गया है। इसका आशय यह है कि जो भी कर्म बंधता है वह अपने बन्ध समयसे लेकर एक आवलि काल तक अपकर्षण आदि सकल करणोंके अयोग्य रहता है। उसके बाद द्वितीय आवधिका काल प्रारम्भ होनेपर उस कर्मपुंजका अपकर्षण आदि कार्य होने लगता है । शेष कथन स्पष्ट हो है। ६४१५. अब इस भाष्यगाथाके इस प्रकारके अर्थको विभाषा करते हुए आगेके विभाषा ग्रन्थको कहते हैं * अब दूसरो भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं । 5 ४१६. यह सूत्र सुगम है। ॐ क्रोध संज्वलनका जो प्रदेशपुंज बध्यमान है वह पूरा प्रदेशपुंज बन्धावलि काल तक क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रहकृष्टि में दिखाई देता है। 5 ४१७. क्योंकि क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रहकृष्टि स्वरूपसे बद्ध नवकबन्ध प्रदेशपुंजका बन्धावलि काल तक कहीं अवस्थानको छोड़कर अन्य प्रकार सम्भव नहीं है। __तदनन्तर बन्धावलिको व्यतीत करके अवस्थित वह नवकबन्ध कर्मपुंज क्रोषसंज्वलनको तीनों संग्रहकृष्टियोंमें और मानसंज्वलनको प्रथम संग्रहकृष्टि में दिखाई देता है। ६४१८. शंका-इसका क्या कारण है ? समाधान-वहाँ बन्धावलिको व्यतीत करके अवस्थित उसी प्रदेशपुजका द्वितीय आवलिके प्रथम समयमें पूर्वोक्त नियमके कारण संक्रमण करते हुए क्रोषसंज्वलनको तोनों संग्रहकृष्टियोंमें और मानसंज्वलनकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें अवस्थान स्पष्टरूपसे उपलब्ध होता है।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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