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जयधवासहिदे फसायपाहुडे * खेत्तम्हि सिया अधोलोगिगं सिया उड्ढलोगिगं णियमा तिरियलोगिगं ।
६३८७. अधोलोगसंबंधेण उड्डलोगसंबंधेण च ज बद्धं कम्मं तं सिया अत्यि सिया णत्यि त्ति भयणिज्ज। तिरियलोगियं तु कम्मं णियमा अत्थि ति वुत्तं होइ। तं कधं ? कम्मढिवि. कालब्भंतरे उडलोगमयंतूण अघोलोगे चेव अच्छियूणागदस्स उड्डलोगसंचओ ण लग्भवे । एवमधोलोगपरिहारेण उनलोगे चेव कम्मटिदिमेत्तकालमच्छियूणागवस्स अघोलोगसंचओ ण लग्भदि त्ति 'वोण्णमेदेसि' भयणिज्जत्तं जादं उड्डाधोलोगपरिहारेण तिरियलोगे चेव कम्मट्टिदिमणुपालेदूणागवस्स वा खवगस्स तदुभयसंचओ ण लब्भदि त्ति भजियव्वो जादो। तिरियलोयसंचयो पुण ण भजियव्यो। कम्महिदिमेत्तकालमुड्ढाधोलोगेसु चेव समयाविरोहेणावद्विवस्स वि पुणो तिरियलोगखेत्तमणागंतूण खवगसेढिसमारोहणे संभाणुवलंभादो। एत्थ तिरियलोयसंचयं धुवं कादूण उड्डाघोलोयसंचयस्स भयणिज्जभावेण चत्तारि भंगा वत्तव्वा। संपहि एक्स्सेवत्थस्स फुडीकरण?भुत्तरसुत्तमोइण्णं
* अधोलोगमुड्ढलोगिगं च सुद्धं णस्थि ।
६३८८. अधोलोगसंचयो उड्ढलोगसंचयो च खवगसेढीए भयणिज्जभावेण संभवंतो जम्हि काले संभवह तम्हि सुद्धो होदूण ण लब्भइ, किंतु तिरियलोगसंचयसम्मिस्सो चेव दीसह। कि कारणं? जहण्णदो वि संखेज्जावलियमेततिरियलोयसंचयस्स मणुसपज्जाएण संचिदस्स तत्थाव
६३८७. अधोलोकके सम्बन्धसे और ऊवलोकके सम्बन्धसे जो कर्म बन्धको प्राप्त होता है वह इस क्षपकके स्यात् है और स्यात् नहीं है, इसलिए भजनीय है । परन्तु तिर्यग्लोकके सम्बन्धसे पूर्वबद्ध कर्म इस क्षरकके नियमसे पाया जाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
शंका-वह कैसे ?
समाधान-क्योंकि कर्मस्थिति सम्बन्धी कालके भीतर ऊलोकमें न जाकर अधोलोकमें ही रहकर वहाँसे आये हुए इस क्षपक जीवके ऊवलोकमें किया गया संचय नहीं पाया जाता। इसी प्रकार अधोलोकमें न जाकर कर्मस्थितिसम्बन्धी कालके भीतर ऊर्ध्वलोकमें ही रहकर वहाँसे आये हुए इस क्षपक जीवके अधोलोकमें किया गया कर्मोका संचय इस क्षवकके नहीं पाया जाता, इसलिए इन दोनों लोकोंमें बद्ध कर्मों को भजनीयता इस क्षपकके बन जाती है। अथवा ऊर्ध्वलोक और अधोलोकका परिहार करके तिर्यग्लोकमें ही कर्मस्थितिका पालन करके आये हुए इस क्षपकके ऊर्ध्वलोक और अधोलोक उन दोनोंमें हुआ कर्म संचय इस क्षपकके नहीं पाया जाता, इसलिए भजनीय हो जाता है। परन्तु तिर्यग्लोकमें हुआ संचय इस झपकके भजनीय नहीं है, क्योंकि कर्मस्थितिसम्बन्धी कालके भीतर ऊर्ध्वलोक और अधोलोकमें समयके अविरोधपूर्वक रहे हए जीवका तिर्यग्लोकसम्बन्धी क्षेत्रमें गये बिना क्षपकणिपर थारोहण करना सम्भव नहीं है। यहाँपर तिर्यग्लोकमें हुए संचयको ध्रुव करके ऊर्ध्वलोक और अधोलोकमें हुए संचयके भजनीयपनेके कारण चार भंग कहने चाहिए। अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिए आगेका सूत्र आया है
* अधोलोक और ऊर्चलोकमें हुआ संचय इस क्षपकके शुद्ध नहीं पाया जाता।
३८८. अधोलोकमें हुआ संचय और ऊर्ध्वलोकमें हुआ संचय क्षपकश्रेणिमें भजनीयरूपसे सम्भव है, अतः जिस कालमें इस क्षपक जीवके सम्भव है उस कालमें शुद्ध होकर नहीं प्राप्त होता, किन्तु उक्त संचय तिर्यग्लोकमें हुए संचयके साथ सम्मिश्र होकर ही दिखाई देता है, क्योंकि जघन्यरूपसे भी संख्यात आवलिप्रमाण कालके भीतर तिर्यग्लोकमें जो संचय हुआ है