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________________ सवगसेढीए छट्ठमूलगाहाए पढमभासगाहा १३७ ६ ३७३. लिंगेण च एव भणिदे लिंगग्गहणेसु तावसादिवेसग्गहणलपखणेसु बट्टमाणेण पुठवबद्धाणि कम्माणि किमेदस्स खवगस्स अत्थि आहो त्यि ति पुच्छाणिद्देसो कवो होई। 5 ३७४. 'कम्हि खेत्तम्हि' एवं भणिदे उड्डाघोतिरियलोयभेयभिण्णेसु खेतवियप्पेसु वट्टमाणेण पुथ्वबद्धाणं कम्माणं भयणिज्जाभयणिज्जभाव विसया पुच्छा णिहिट्ठा ति घेत्तव्वा । एदेणेव देसा. मासयभावेण कालविभागेसु वि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणिभेयभिण्णेसु वट्टमाणेण पुथ्वबद्धाणं कम्माणं भयणिज्जाभयणिज्जभावविसयो पुच्छाणिद्देसो संगहेयन्वो। वृत्तसेसाणं संजमाविमग्गणाणं च एत्थेव संगहो वटव्वो; सुत्तस्सेदस्स देसामासयत्तादो । एवमेदीए मूलगाहाए पुच्छामेतेण सूचिदाणमत्यविसेसाणं विहासणं कुणमाणो तत्थ पडिबद्धाणं भासगाहाणमियत्तावहारणमिवमाह * एदिस्से दो भासगाहाओ । 5 ३७५. सुगर्म। * तासि समुकित्तणा। ३७६. तासि दोण्हं भासगाहाणं जहाकममेसा समुक्कित्तणा बटुव्वा त्ति वुत्तं होह। (१३९) लेस्सा साद असादे च अमज्जा कम्म सिप्प लिंगे च । खेत्तम्हि च भज्जाणि दुसमाविमागे अमज्जाणि ॥१९२॥ ६३७३. "लिंगेण च' ऐसा कहनेपर तापस आदि लिंगग्रहणलक्षण लिंगग्रहणोंमें विद्यमान बोवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके हैं या नहीं हैं यह पृच्छानिर्देश किया गया है। 5 ३७४. 'कम्हि लेसम्हि' ऐसा कहनेपर ऊवलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोकके भेदसे भेदको प्राप्त हुए क्षेत्रविशेषोंमें विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म भजनीय हैं या अभजनीय है यह पृच्छा निर्दिष्ट की गयी जाननी चाहिए। तथा इसी वचनके द्वारा देशामर्षकरूपसे ग्रहण किये गये अवसर्पिणी और उत्सर्पणोके भेदसे भेदको प्राप्त हुए कालके विभागों में विद्यमान बीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं या अभजनीय हैं इस पृच्छानिर्देशका संग्रह करना चाहिए। तथा पूर्वमें जिन मार्गणाबोंकी अपेक्षा निर्देश कर आये हैं उनसे शेष रहीं संयम आदि मागंणाबोंका संग्रह भी यहींपर कर लेना चाहिए। इस प्रकार इस मूलगाथामें पृच्छाद्वारा सूचित हुए अर्थविशेषको विभाषा करते हुए उक्त विषयमें प्रतिबद्ध भाष्यगाथाओंकी इयत्ताका अवधारण करनेके लिए इस सूत्रको कहते हैं * इस छठी मूलगाथाको दो भाष्यगाथाएं हैं। 5 ३७५. यह सूत्र सुगम है। * अब उनकी समुत्कीर्तना करते हैं। ६३७६. उन दोनों भाष्यगाथाबोंकी यथाक्रमसे समुत्कोतना बाननी चाहिए यह उक कथनका तात्पर्य है। (१३९) सभी लेश्याम तथा साता और असातामें पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके अभजनीय हैं । बसि आदि सभी कर्मोमें, सभी शिल्पोंमें, सभी लिंगोंमें और सभी क्षेत्रों में पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं। तथा कालके सभी विभागों में पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं ॥१९२॥ १८
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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