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________________ १३६ उवरिमं पबंध माढवेइ जयधवासहिदे कसायपाहुडे * एत्तो छट्ठी मूलगाहा | ६ ३६९. एत्तो उवरि छुट्टी मूलगाहा विहासियग्वा त्ति । (१३८) किं लेस्साए बद्धाणि केसु कम्मेसु वट्टमाणेण । सादेण असादेण च लिंगेण च कम्हि खेत्तम्हि ॥ १९१ ॥ ९ ३७०. एसा मूलगाहा लेस्सामग्गणाए सिप्पकम्मभेदेसु सादासादोदये तावसादिलिंगगणेसु खेत्त-कालविभागेसु च वट्टमाणेण पुव्वबद्धाणं कम्माणं खवगसंबंधेग भय णिज्जाभय णिज्जसत्रेण संभवगवेसण मोइण्णा । तं जहा - 'किलेस्साए बद्धाणि' एवं भणिदे छबिहाए लेस्साए वाणि कम्माणि किमेदस्स खवगस्स भयणिज्जाणि आहो ण भयणिज्जाणि त्ति पुच्छाहि. संबंध । तदो एसो सुतावयवो लेस्सामग्गणाए पुग्वबद्वाणं कम्माणं भयणिज्जाभय णिज्ज भावगवेसमुवणिबद्धो दटुव्वो । $ ३७१. 'केसु व कम्मे वट्टमाणेण' जीवनोपायभूताः क्रियाविशेषाः कर्माणि कृप्यादीनि । तत्थ के कम्मे वट्टमाण पुठवबद्धाणि कम्माणि एदस्स खवगस्स भज्जाणि केसु वा ण भज्जाणि त्ति पुच्छा एदेण कदा होइ । ६ ३७२. 'सावेण असावेण च' एवेण सुत्तावयवेण सादासादोदय विसेसिदेण जीवेण पुव्वबद्धाणं कम्पाणं भणिज्जाभय णिज्जभावमग्गणा पुच्छामुहेण णिद्दिट्ठा दटुव्वा । करते हुए आगे के प्रबन्धको आरम्भ करते हैं - * अब इससे आगे छठी मूलपाथाका अवतार करते हैं । ६ ३६९. इससे आगे छठी मूलगाथाकी विभाषा करनी चाहिए। (१३९) किस लेश्या में, किन कर्मोंमें, किस क्षेत्र और कालमें वर्तमान जीवके द्वारा तथा साता, आगता और किस लिंगके साथ वद्ध कर्म इस क्षपकके पाये जाते हैं ॥१९१॥ ६ ३७०. यह मूल सूत्रगाथा लेश्या मार्गणा में, शिल्पकर्मके भेदोंमें, साता और असाताके उदय में तापस आदि त्रिगग्रहणों में तथा क्षेत्र और कालके भेदों में विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्मों के क्षपके सम्बन्धसे भजनीय और अभजीयस्वरूपसे सम्भवकी गवेषणा करनेके लिए अवतीर्णं हुई है । वह जैसे - ' कलेस्साए बद्धाणि' ऐसा कहनेपर छह प्रकारको लेश्याओं में बद्ध कर्म क्या इस क्षपक भजनीय हैं या भजनीय नहीं हैं इस प्रकार इस पृच्छका प्रकृत में सम्बन्ध है । इसलिए यह सूत्रका अवयव लेश्यामार्गणा में पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं या अभजनीय हैं इस बात की गवेषणा करने के लिए निबद्ध की मई जाननी चाहिए। $ ३७१. 'केसु व कम्मे वट्टमाणेण' - जीवन संचालनके उपायभूत क्रियाविशेष कृषी आदि कर्म हैं । उनमें से किन कम विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं तथा किन कर्मोंमें विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय नहीं हैं यह पूच्छा इस वचन द्वारा की गयो है । § ३७२. तथा इस सूत्र के 'सावेण असादेण च' इस अवयवद्वारा सातावेदनीय और असातावेदनीयके उदयसे युक्त जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं या अभजनीय हैं यह मार्गणा उक्त पृच्छाद्वारा की गयी जाननी चाहिए।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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