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खवगसेढीए पंचममूलगाहाए चउत्थी भावगाहा
§ ३६६. सुगमं ।
(१३७) कम्माणि अभज्जाणि दु अणगार - अचक्खुदंसणुवजोगे ।
अध ओहिदंसणे पुण उवजोगे होंति भज्जाणि ॥ १९०॥
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६ ३६७. एसा चउत्थी भासगाहा दंसणमग्गणाविसये पुत्रबद्धाणं कम्माणं भयणिज्जाभणिज्जतरुवेण अत्थित्तगवेसणटुमोद्दण्णा । तं जहा - 'कम्माणि अभज्जाणि दु०' एवं भणिदे चवखुदंसणोवजोगे अचक्खुदंसणोवजोगे च वट्टमाणेण पुण्यबद्धाणि कम्माणि एक्स्स खवगस्स णियमा अस्थि त्ति वृत्तं होइ, दोण्हमेदेसि मुवजोगाणमेवस्स खत्रगस्स कम्मट्ठिदिअभंतरे णिच्छएण संभव सणादो। एत्थ अणगारोवजोगे त्ति सामण्णणिद्देसे वि पारिसेसियणाएण चक्खुदंसणोव जोगस्सेव गहणं कायव्वं, सेसाणं दोन्हं छदुमत्य इंसणोवजोगाणं सुत्ते पुध निद्देसवंसणावो । 'अध ओहिदंसणे पुण०' एवं भणिदे अघिदंसणोवजोगे वट्टमाणेण पुव्वबद्धाणि एक्स्स खवगस्स भयणिज्जाणि त्ति घेत्तव्यं, ओहिदंसणावरणक्खओवसमस्त सव्वजीवेसु संभवाणु वलं भावो । संपहि एवंविहो एदिस्से गाहाए अत्यो सुगमो त्ति काढूण ण तत्थ विहा संतरमाढवेयव्यमिवि पटुप्पाएमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* विहासा एसा ।
६ ३६८. एसा चैव समुक्कित्तथा एविस्से गाहाए बिहासासरूवेण पयट्टा, सुबोहत्तावो । तम्हा ण एदिस्से विहासंत रमेहिमाड विज्जदि त्ति एसो एदस्स भावत्यो । एवमेत्तिएण पबंधेण पंचमी मुलगाहाए विहासणं समाषिय संपहि बहावसरपलाए छटुमूलगाहाए विहासणं कुणमाणो
६ ३६६. यह सूत्र सुगम है ।
* अनाकार चक्षुवनोपयोग और लचक्षुबर्शनोपयोगमें पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके अभजनीय हैं। तथा अवधिदर्शनोपयोगमें पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भवनीय हैं।
$ ३६७. यह चौथी भाष्यगाथा दर्शनमागंणाके विषयमें पूर्वबद्ध कर्मोंके इस क्षपक के भजनीय मोर अभजनोयस्वरूपसे अस्तित्वकी गवेषणा करनेके लिए अवतीर्ण हुई है । वह जैसे' - कम्माणि अभज्जाणि दु' ऐसा कहनेपर -चक्षुदर्शनोपयोग और अचक्षुदर्शनोपयोगमें विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके नियमसे पाये जाते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि इन दोनों उपयोगों का इस क्षपक कर्मस्थितिके भीतर निश्चयसे सम्भव देखा जाता है। इस सूत्र में 'अणगारोवजोगो' ऐसा सामान्य निर्देश करनेपर भी परिशेषन्यायसे चक्षुदर्शनोपयोगका ही ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि शेष दो छद्मस्थ उपयोगोंका सूत्रमें पृथक् निर्देश देखा जाता है । 'अघ ओहिदंसणे पुण' ऐसा कहनेपर अवधिदर्शनोपयोगमें विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि अवधिदर्शनावरणका क्षयोपशम सब जीवोंमें सम्भवरूपसे नहीं उपलब्ध होता । अब इस प्रकारका इस भाष्यगाथाका अर्थ सुगम है ऐसा करके उसके विषय में अन्य दूसरी विभाषा आरम्भ नहीं करनी चाहिए ऐसा कथन करते हुए आगे के सूत्रको कहते हैं
* यह समुत्कीर्तना हो इसकी विभाषा है ।
$ ३६८. यह समुत्कीर्तना ही इस भाष्यगाथाकी विभाषारूपसे प्रवृत्त है, इसलिए इस समय इसकी दूसरी विभाषा प्रारम्भ नहीं की जाती है यह इसका भावार्थ है। इस प्रकार इतने प्रबन्ध द्वारा पाँचवीं मूल गाथाकी विभाषा समाप्त करके अव यथावसर प्राप्त छठी मूल गाथाकी विभाषा