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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * एत्तो विदियाए मासगाहाए समुक्कित्तणा । 5 ३५६. सुगमं। * तं जहा। 5 ३५७. सुगम। (१३५) ओरालिये सरीरे ओरालियमिस्सए च जोगे दु ।
चदुविधमण-वचिजोगे च अमज्जगा सेसगे भज्जा ॥१८८॥ ६ ३५८. एसा विदियभासगाहा जोगमग्गणाविसये पयवत्थगवेसण?मोइण्णा। तं जहा'ओशलिये सरोरे०' एवं भणिवे ओरालियकायजोगेण ओरालियमिस्सकायजोगेण चउव्विहमण. जोग-चविहवचिजोगभेदेसु च वट्टमाणेण पुव्वबद्धाणि एदस्स खवगस्स णियमा अस्थि, तदो ण ताण भाजयस्वाणि ति सुत्तत्थरूगहो। एदेसिमभज्जते कारणं सुगमं । 'सेसगे भज्जा' एवं भाणदे सेसजोगेसु वेउध्विय-वेउव्वियमिस्स-आहार-आहारमिस्स-कम्मइयकायजोगसण्णिदेसु पुवब कम्मरदेसा भजियव्वा, तेसि कम्मदिदिअभंतरे अवस्संभावणियमाणुवलंभावो त्ति घेत्तन्वं । संपहि एक्स्सेव सत्तत्थस्स फुडीकरणट्ठमुवरिमो विहासागंथो
* विहासा। $ ३५९ सुगमं।
* इससे आगे दूसरी भाष्यगाथाको समुत्कोतना करते हैं । $३५६. यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। ६३५७. यह सूत्र सुगम है।
(१३५) औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग, चारों मनोयोग और चारों वचनयोगों में पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके अभजनीय हैं तथा शेष योगोंमें पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं ॥१२९॥
६३५८. यह दूसरी भाष्यगाथा योगमार्गणामें प्रकृत अर्थको गवेषणा करनेके लिए अवतःण हुई है। वह जेसे 'ओरालिये सरीरे०' ऐसा कहनेपर औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग, चारों प्रकारके मनोयोग और चारों प्रकारके वचनयोगके भेदोंमें विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके नियमसे पाये जाते हैं, इसलिए वे भजनीय नहीं हैं इस प्रकार यह इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है। इन योगोंमें बद्ध कर्म इस क्षपकके अभजनीय हैं इस विषयमें कारणका कथन सगम है। 'सेसगे भजजा' ऐसा कहनेपर वैकियिककाययोग. वैक्रियिकमिश्रकाययोग. आहारककाययोग, आहारकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोगसंज्ञक इन योगोंमें पूर्वबद्ध कर्मप्रदेश इस क्षपकके भजनीय हैं, क्योंकि ये योग कर्मस्थितिके भीतर अवश्य ही होते हैं ऐसा नियम नहीं पाया जाता ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए। अब इसी सूत्रके अर्थको स्पष्ट करनेके लिए आगेका विभाषाग्रन्थ आया है
* अब दूसरी भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। 5 ३५९. यह सूत्र सुगम है।