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________________ १२२ बघवलासहिदे कसायपाहुडे मुत्तरसुत्तमाह * एत्तो एक्कैक्काए गदीए कायेहिं च समज्जिदन्लग्गस्स जहण्णुक्कस्सपदेसग्गस्स पमाणानुगमो च अप्पाबहुअं च कायव्वं । ९ ३२७. एत्तो उवरि एक्केषकाए गदीए तस्थावरका यह य जं समज्जिवं कम्मं खवगसेढीए भवणिज्जाभय णिज्जसरुवेण समुवलब्भमाणं तस्स पवेसग्गस्स जहण्णुक्कस्स पद विसे सिवस्स पमाणानुगमो काव्वो । तवो तब्बिसयमप्पाबहुअं च कायव्वं, अण्णहा तव्विसय विसेस णिण्णयापत्तदो त्ति भणिदं होदि । संपहि एवेण सुत्तेण समप्पिदाणं पमाणप्पाबहुआण मेत्थमणुगमो कायो । ६ ३२८. तं जहा - गवीसु कायेसु च जेसु समज्जिवं कम्मं भयणिज्जं जावं तेसु समज्जिवस्त पवेर्सापडल्स पमाणं जहण्णेण एगपरमाणू भववि, उक्कस्सेण अणंता कम्मपदेसा लब्भंति । जैसु संविदव्वं नियमा अत्थि तेसु जहण्णुक्कस्सेण अणंता कम्मपवेसा भवंति । एसो पमाणानुगमो । ६ ३२९. संपहि अप्पा बहुअं वुच्चदे - भयनिज्जाणं जहण्णपदेसग्गं थोवं । उक्कस्लयं पदेसग्गमणंतगुणं । अभय णिज्जाणं जहण्णओ पदेपिडो थोवो । उक्कस्सओ पवेसपिंडो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो । एक-एक काय में संचित हुए जघन्य और उत्कृष्ट प्रदेशपुंजके प्रमाणका निर्णय और अल्पबहुत्व की प्ररूपणा करते हुए उसको निमित्त कर आगेके सूत्रको कहते हैं * इससे आगे एक-एक गति द्वारा और एक-एक काय द्वारा समजित होकर सम्बद्ध जघन्य और उत्कृष्ट कर्मप्रवेशपुंजके प्रमाणका अनुगम और अल्पबहुत्व करना चाहिए । ६ ३२७. इससे आगे एक-एक गति द्वारा तथा त्रस और स्थावर काय द्वारा जो अजित किया गया कर्म क्षपकश्रेणिमें भजनीय और अभजनीयरूपसे उपलभ्यमान है उस जघन्यपद और उत्कृष्टपद से विशेषित प्रदेशपुंजके प्रमाणका अनुगम करना चाहिए। तदनन्तर तद्विषयक अल्पबहुत्व करना चाहिए, अन्यथा तद्विषयक विशेष निर्णय नहीं उत्पन्न होता यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इस सूत्र द्वारा विवक्षित किये गये प्रमाण और अल्पबहुत्वका यहाँपर अनुगम करना चाहिए । ९ ३२८. वह जैसे- गतियों में ओर कायोंमेंसे जिस गति और काय में अर्जित हुआ कर्म इस क्षपकके भजनीय होता है उस गति और कायमें अर्जित हुए प्रदेशपिंडका प्रमाण जघन्यरूपसे एक परमाणु प्राप्त होता है और उत्कृष्टरूपसे अनन्त कर्मप्रदेश पाये जाते हैं । परन्तु जिस गति और काय में संचित हुआ कर्मद्रव्य इस क्षपकके नियमसे पाया जाता है उस गति और कायमें जघन्य और उत्कृष्टरूपसे अनन्त कर्मप्रदेश पाये जाते हैं । यह प्रमाणानुगम है । ६३२९. अब अल्पबहुत्वका कथन करते हैं। भजनीय पदोंका जघन्य प्रदेशपुंज सबसे अल्प होता है। उससे उत्कृष्ट प्रदेशपुंज अनन्तगुणा होता है । अभजनीय पदोंका जघन्य प्रदेशपिण्ड सबसे अल्प होता है । उससे उत्कृष्ट प्रदेशपिण्ड असंख्यातगुणा होता है । गुणकार क्या है ? पत्योपमका असंख्यातवाँ भाग गुणकार है ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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