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________________ खवगसेढोए तदियमूलगाहाए तदियत्थे च नत्थी भासगाहा ६२८१. एसा चउत्थभासगाहा पुव्वुत्तजवमज्झसण्णिवेसस्सेव फुडीकरणटुं पढमट्टिदीए पदेसग्गस्सावट्ठाणमेदेण सरूवेण होदि त्ति जाणावण णमित्तमोइण्णा, परिप्फुडमेवेत्थ तहाविहत्थस्स पडिबद्धत्तदंसणादो। एत्थ पुथ्वद्धे पदसंबंधो एवं कायव्वो-'उदयादि०' उदयप्पहाडि जाओ द्विदोओ पढमट्टिदिसंबंधिणोओ तासु णिरंतरसहवेण गुणसेढो होइ त्ति । एदस्त चेव फुडोकरणटुं गाहापच्छद्धो समोइण्णो। तत्थ पदसंबंधो-उदयपहाडि जं पदेसग्गं विज्जवि विस्सदि वा तं गणणादियंतेण गुणगारेण दट्टठवं, असंखेज्जगुणसेढोए तत्थ पदेसग्गस्स समवटाणमवहारियमिदि वुत्तं होदि। णेदमेत्थासंकणिज्ज, 'पढमा जं गुणसेढो' इदि भणंतेण विदियभासगाहाए चेव एसो अत्यविसेसो जाणाविदो, तदो किमेदेण पुणरत्तगाहाणिद्देसेणेति ? कुदो ? तत्य सूचणामेतेण णिट्ठिस्त गुणसे ढिविण्णासस्स विसेसियूण परूवणे पुणरुत्तदोसाणवयारादो । संपहि एविस्से भासगाहाए अत्थविहासणं कुणमाणो उवरिमं मुत्तपबंधमाह * विहासा। 5२८२. सुगमं। * उदयट्ठिदिपदेसग्गं थोवं । 5२८३. सुगमं। * विदियाए द्विदीए पदेसग्गमसंखज्जगुणं । ६२८४. को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। ६२८१. यह चौथो भाष्यगाथा पूर्वोक्त यवमध्यके सन्निवेशको ही स्पष्ट करने के लिए प्रथम स्थितिमें प्रदेशपुंजका अवस्थान इस क्रमसे होता है, इस बातका ज्ञान करानेके लिए अवतीर्ण हुई है, क्योंकि इसमें सुस्पष्टरूपसे ही उस प्रकारका अर्थ प्रतिबद्ध देखा जाता है। प्रकृतमें पूर्वार्धका पदसम्बन्ध इस प्रकार करना चाहिए-'उदयादि०' उदयसे लेकर प्रथम स्थितिसम्बन्धी जो स्थितियां हैं उनमें निरन्तररूपसे गुणश्रेणि होतो है। इस प्रकार इसी अर्थके स्पष्ट करनेके लिए गाथाका उत्तरार्ध अवतीर्ण हुआ है। प्रकृतमें पदसम्बन्ध इस प्रकार है-उदयसे लेकर जो प्रदेशपुंज दिया जाता है या दिखाई देता है वह गुणकारको अपेक्षा असंख्यातगुणित जानना चाहिए। वहां असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे प्रदेशपुंजका अवस्थान अवधारित करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहां ऐसो आशंका नहीं करनी चाहिए कि 'पढमा जं गुण सेढो' ऐसा कथन करते हुए कषायप्राभृतकारने दूसरी भाष्यगाथा द्वारा हो इस अर्थविशेषका ज्ञान करा दिया है, इसलिए पुनरुक्त इस गाथाके निर्देश करनेसे क्या प्रयोजन है, क्योंकि उक्त दूसरी भाष्यगाथामें सूचनामात्ररूपसे निर्दिष्ट किये गये गुणश्रेणिनिर्देश का इस भाष्यगाथामें विशेषरूपसे प्ररूपणा करनेपर पुनरुक्त दोषका अवतार नहीं होता। अब इस भाष्यगाथाके अर्थको विभाषा करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * अब इस भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। ६२८२. यह सूत्र सुगम है। * उदयस्थितिमें प्रदेशपुंज थोड़ा है। ६२८३. यह सूत्र सुगम है। * उससे दूसरी स्थितिमें प्रदेशज असंख्यातगुणा है। 5२८४. शंका-गुणकार क्या है ?
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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