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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पढमणिसेगपदेसपिंडो संखेज्जगुणो असंखेज्जगुणो अण्णारिसो वा अहोदूण णियमा असंखेज्जभाग
भहिओ चेव होदि, उवरोदो पहुडि अणंतरोवणियाए एगेगगोवुच्छविसेसमेत्तेण वड्डिदूणागदपदे. सग्गस्स णिरुद्ध टिदीए पलिदोवमासंखेज्जदिभागपडिभागियत्तं मोत्तूण पयारंतरसंभवाणुवलंभादो त्ति ।
६२७८. एवं तदियभासगाहाए विहासणं समाणिय संपहि जहावसरपत्ताए चउत्थभास. गाहाए अवयारं कुममाणो इदमाह
* एत्तो चउत्थीए भासगाहाए समुक्कित्तणा। 5 २७९. सुगमं। * तं जहा। ६२८०. सुगमं। (१३६) उदयादि या ट्ठिदीओ णिरंतरं तासु होइ गुणसेढी ।
उदयादिपदेसग्गं गुणेण गणणादियंतेण ॥१७९।।
प्रदेशजसे प्रथम निषेकसम्बन्धी प्रदेशपिण्ड संख्यातगुणा, असंख्यातगुणा या दूसरे रूप न होकर नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक ही होता है, क्योंकि ऊपरसे लेकर अनन्तरोपनिधाको अपेक्षा एक-एक गोपुच्छविशेष मात्र बढ़कर प्राप्त हुआ प्रदेशपंज विवक्षित स्थितिमें पल्योपमके असंख्यातवें भागके प्रतिभागपिनेको छोडकर वहां अन्य प्रकार सम्भव नहीं है।
विशेषार्थ-द्वितीय स्थितिके प्रथम निषेकमें जितना प्रदेशपुंज प्राप्त होता है उससे उसके दूसरे निषेकमें एक विशेषमात्र द्रब्य कम होता है। इसी प्रकार आगे-आगे प्रत्येक निषेकमें एक-एक विशेषमात्र द्रव्य कम होता जाता है। यहां द्वितीय स्थितिका स्थितिसत्कर्म वर्ष पृथक्त्वप्रमाण है । उसमें एक आवचिप्रमाण कालका भाग देनेपर संख्यात आवलियां प्राप्त होती हैं। इसीलिए यहाँपर संख्यात आवलियोंसे निषेक भागहारको भाजित करनेपर प्राप्त हुए लब्ध एक भागसे द्वितीय स्थितिके प्रदेशपंजको भाजित करनेपर जो एक भाग लब्ध आया उतना द्वितीय स्थितिके अन्तिम निषेकके प्रदेशपंजसे उसीके प्रथम निषेकके प्रदेशज में अधिक द्रव्यका प्रमाण होता है। इस प्रकार परम्परोपनिधाको अपेक्षा देखनेपर द्वितीय स्थितिके अन्तिम निषेकके द्रव्यसे उसीके प्रथम निषेकका द्रव्य असंख्यातवां भाग अधिक होता है यह सिद्ध हुआ।
६२७८. इस प्रकार तीसरी भाष्यगाथाको विभाषा समाप्त करके अब यथावसरप्राप्त चौथो भाष्यगाथाका अवतार करते हुए इस सूत्रको कहते हैं
* यह चौथो भाष्यगाथाको समुत्कोतना है। 5२७९. यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। ६२८०. यह सूत्र सुगम है।
(१३६) उदयसे लेकर प्रथम स्थितिसम्बन्धी जितनी स्थितियां हैं उनमें निरन्तररूपसे गुणश्रेणि होती है। उसकी अपेक्षा एक-एक स्थितिमें उदयसे लेकर असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे प्रदेशपुंज दिया जाता है ॥१७९॥