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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ६२६४. संपहि एदरसेवत्थस्स फुडीकरणटुमुवरिमं विहासागंथमोदारइस्सामो* विहासा। ६२६५. सुगमं। * जहा। ६२६६. सुगम।
* जं किट्टि वेदयदे तिस्से उदयविदीए पदेसग्गं थोवं । विदियाए द्विदीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । एवमसंखेज्जगुणं जाव पढमद्विदीए चरिमद्विदि त्ति ।
६२६७. कुदो एवं चे ? पढमट्टिबीए उदयादिगुणसेढीणिक्खेवं कादूण किट्टोओ वेदेमाणस तस्थ बिम्जमाण-विस्समाणपदेसग्गस्स संखेज्जगुणकमेणावट्ठाणं मोतूण पयारंतरासंभवावो।
*सदो विदियद्विदीए जा आदिद्विदी तिस्से असंखेज्जगुणं ।।
5 २६८. किं कारणं? विवगुणहाणिमेत्तसमयपबद्धेसु संखेज्जावलियाहि खंडिदेसु तत्थेयखंडमेत्तदध्वस्स विदियट्टिदीए आदिट्टिदिम्मि समुवलब्भमाणस्स पुविल्लगुणसेढिसीसयदव्वादो पलिदोवंमस्स असंखेज्जविभागपडिभागियादो असंखेज्जगुणत्तसिद्धीए परिप्फुडमुवलंभादो। है इसे स्पष्ट करते हुए वह यवमध्यके समान दिखाई देती है यह स्पष्ट किया है। यव बीचमें स्थूल होकर दोनों ओर घटता हुआ होता है ठीक इसी प्रकार वेद्यमान कृष्टि भी प्रदेशपुंजकी अपेक्षा प्रतीत होती है । शेष स्पष्टीकरण मूलमें किया हो है।
६२६४. अब इसी अर्थको स्पष्ट करनेके लिए आगेके विभाषा ग्रन्थका अवतार करेंगे* अब इस भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। ६२६५. यह सूत्र सुगम है।
जैसे। 5२६६. यह सूत्र सुगम है।
* जिस कृष्टिका वेदन करता है उसको उदयस्थितिमें प्रदेशपुंज सबसे स्तोक होता है। उससे दूसरी स्थितिमें प्रदेशपुंज असंख्यातगुणा होता है। इस प्रकार प्रथम स्थितिसम्बन्धी अन्तिम स्थितिके प्राप्त होने तक प्रदेशपुंज उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा होता है।
६२६७. शंका-ऐसा किस कारणसे है ?
समाधान-क्योंकि प्रथम स्थितिमें उदयादि गुणश्रेणिका निक्षेप करके कृष्टियोंका वेदन करनेवाले जीवके उसमें दिये जानेवाले और दिखनेवाले प्रदेशपुंजके संख्यातगुणे अवस्थानको छोड़कर अन्य प्रकार सम्भव नहीं है।
* उससे द्वितीय स्थितिको जो प्रथम स्थिति है उसमें असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजका अवस्थान होता है।
६२६८. शंका-इसका क्या कारण है ?
समाधान-डेढ़ गुणहानिप्रमाण समयप्रबद्धोंके संख्यात आवलियोंसे भाजित करनेपर वहां एक भागप्रमाण लब्ध हुए द्रव्यका द्वितीय स्थितिको आदि स्थितिमें अवस्थान होता है, इसलिए पूर्वके गुणश्रेणिशीर्षसम्बन्धी द्रव्यसे यह पल्योपमके असंख्यातवें भागके प्रतिभागरूप असंख्यागुणा सिद्ध होकर स्पष्टरूपसे उपलब्ध होता है।