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________________ खवगसे ढोए तदियमूलगाहाए पढमभासगाहा * कोहस्स विदियाए संगह किट्टीए पदेसग्गं विसेसाहियं । २०४. एत्थ विसेसपमाणमावलियाए असंखेज्जदिभागपडिभागियं, परत्थाणविसेसत्ता दो । * तदियाए संगह किट्टीए पदसग्गं विसेसाहियं । $ २०५. केत्तियमे तेण ? पलिदोवमस्स असंखेज्ज विभागपडिभागिय सत्याणविसेसमेत्तण । * मायाए पढमसंग किट्टीए पदेसग्गं विसेसाहियं । २०६. केत्तियमेत्ते ? आवलियाए असंखेज्जदिभागखं डिवेयखंडमेत्ते॑ण । कारणं सुगमं । * विदियाए संगह किट्टीए पदेसग्गं विसेसाहियं । * तदियाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं विसेसाहियं । २०७. एदेसु दोसु वि सुत्तेसु विसेसपमाणं पलिदोषमस्स असंखेज्जविभागपडिभागिय - मिदि धेत्तव्वं । सेसं सुगमं । * लोभस्स पढमाए संगह किट्टीए पदेसग्गं विसेसाहियं । २०८. केतियमेत्तेण ? आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेयखंडमेत्तेण । एत्थ सत्याणविसेतो ध्व परत्थाणविसेसो वि पलिदोवमस्स असंखेन्नदिभागपडिभागिओ त्ति के वि ७९ * उससे क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज विशेष अधिक है । $ २०४. यहाँ पर विशेषका प्रमाण परस्थान विशेष के कारण आवलिके असंख्यातवें भागका प्रतिभागीस्वरूप है | * उससे तीसरी संग्रहकृष्टिका प्रवेशपुंज विशेष अधिक है । ६ २०५. शंका - कियत्प्रमाण अधिक है ? समाधान - स्वस्थान विशेषका प्रमाण पत्योपमके असंख्यातवें भागका प्रतिभागीस्वरूप है, अतः उतना अधिक है । * उससे मायासंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज विशेष अधिक है । ६ २०६. शंका - कियत्प्रमाण अधिक है ? समाधान - तीसरी संग्रह कृष्टिमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है । कारणका कथन सुगम है। * उससे दूसरी संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज विशेष अधिक है । * उससे तीसरी संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज विशेष अधिक है । $ २०७. इन दो सूत्रों में भी विशेषका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भागका प्रतिभागीस्वरूप है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। शेष कथम सुगम है । * उससे लोभसंज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टिका प्रदेशपुंज विशेष अधिक है । १२०८. शंका - कियत्प्रमाण अधिक है ? समाधान - मायासंज्वलनकी तीसरी संग्रह कृष्टिमें आवलिके असंख्यातव भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है ।
SR No.090227
Book TitleKasaypahudam Part 15
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size38 MB
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