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उवसामणाक्खएण पडिवदमाणपरूवणा
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* ताहे चेव फड्डयगदं लोभं वेदेदि ।
$ १३२. कुदो १ बादरसांपराइयम्हि सुहुमकिट्टीणमुदयासंभवादो ।
* किट्टीओ सव्वाओ णट्ठाओ ।
$ १३३. किं कारणं ९ तासिं सव्वासिमेगसमएणेव पयदभावेण परिणामदंसणादो |
* णवरि जाओ उदयावलियन्भंतराओ ताओ त्थिवुक्कसंकमेण फडएस विपच्चिहिंति ।
$ १३४. कुदो १ फडएसु वेदिज्जमाणेसु उदयावलियपविट्ठाणं किडीणं पि तभावपरिणामेणुदये विवागं मोचूण पयारंतरसंभवाणुवलंभादो । संपहि बादरलोभं वेदेमाणो फड्डयगदं दव्वमोकड्डियूण संपहियलोभवेदगकालादो आवलियमेत्तेण विसेसाहियं गुणसेढिणिक्खेवं उदयादि णिक्खिवदि । सरिसो च तिविहस्स लोहस्स गुणसेढिणिक्खेवो, णवरि दोन्हं लोभाणं उदयावलियाए णत्थि गुणसेढि - णिक्खेवो । संपहियलोभवेदगकालो किंप्रमाणो चि भणिदे परिवदमाणयस्स जो लोभवेदकालो तं तिणिभागे कायूण तत्थ सादिरेयवेत्तिभागमेत्तो । एवमेदेणायामेण गुणसेढिविण्णासं कुणमाणस्स अणियद्विपढमसमए दिज्जमाणदव्वमसंखेज्जगुणाए
* उसी समय स्पर्धकगत लोभका वेदन करता है ।
$ १३२. क्योंकि बादरसाम्परायमें सूक्ष्म कृष्टियों का उदय असम्भव है ।
* उस समय कृष्टियाँ सब नष्ट हो जाती हैं ।
$ १३३. क्योंकि उन सबका एक समय द्वारा ही प्रकृत स्पर्धक रूप से परिणमन देखा जाता है । * इतनी विशेषता है कि जो कृष्टियाँ उदयावलिमें प्रविष्ट हैं वे स्तिवुक संक्रमण द्वारा स्पर्धकरूपसे विपाकको प्राप्त होती हैं ।
$ १३४. क्योंकि स्पर्धकोंके वेदते समय उदयावलिमें प्रविष्ट हुई कृष्टियों का भी स्पर्धकरूपसे परिणमन होकर स्पर्धकरूप से विपाकको छोड़कर अन्य कोई प्रकार सम्भव है इसकी उपलब्धि नहीं होती । उस समय बादर लोभको वेदता हुआ स्पर्धकगत द्रव्यका अपकर्षण कर इस समय जो लोभका वेदक काल है उससे आवलिमात्र विशेष अधिक कर उदयादिसे लेकर गुणश्रेणि निक्षेप करता है । तीनों लोभोंका गुणश्रेणिनिक्षेप सदृश होता है । इतनी विशेषता है कि अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण इन दो लोभोंका उदयावलिमें गुणश्रेणिनिक्षेप नहीं होता।
शंका- साम्प्रतिक लोभवेदक कालका प्रमाण कितना है ?
समाधान — गिरनेवाले का जो लोभवेदक काल है उसके तीन भाग करके उनमें से साधिक दो त्रिभाग प्रमाण है ।
इस प्रकार इस आयामबाली गुणश्रेणिकी रचना करने वालेके अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें
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