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________________ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे पसत्थोवसामणाए पुण अणुवसंतस्स जह० अंतोमुहुत्तं उक्क उवडपोग्गलपरियट्टमिदि । सो अत्थो सुगमोति सुत्ते अणुवहट्ठो, सादिसपज्जवसिदत्तकालस्स जहण्णुक्कस्सेण तप्पमाणत्तोवलंभादो । एवमुवसामगपडिबद्धाणं चउन्हं मूलगाहाणं अत्थविहासा समत्ता । एत्तो परिवमाणयस्स विहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ — ૪૪ * एत्तो पडिवदमाणयस्स विहासा । $ १०१. चडमाणोवसामगमस्सियूण एसा सव्वा वि विहासा कदा । एतो सेसचदुगाहा डिबद्धा पडिवदमाणगस्स विहासा अहिकया दट्ठव्वा त्ति पयदसंभालणवक्कमेदं । एत्थ पडिवदमाणगो चि बुत्ते ओदरमाणो घेत्तव्वो । सा वुण पडिवदमाणस विहासा दुविहा होदि - - परूवणाविहासा सुत्तविहासा चेदि । तत्थ परूवणाविहासा णाम सुतपदाणि अणुच्चारिय सुत्तसूचिदासेसत्थस्स वित्थरपरूवणा । सुतविहासा णाम गाहा सुत्ताणमवयवत्थपरामरसमुहेण सुत्तफासो । तत्थ ताव परूवणाविहासाए पुव्वमणुगमो कायव्वो ति पदुप्पायणट्ठमिदमाह - * परूवणाविहासा ताव पच्छा सुत्तविहासा $ १०२. परूवणाविहासा ताव पुव्वं गमणिज्जा, तीए विहासिदाए सुत्तविहासा समय काल प्राप्त होता है । इसी प्रकार सभी कर्मोंकी अपेक्षा प्रशस्त उपशामनाके अनुपशान्त रहनेका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । यह अर्थ सुगम है, इसलिए सूत्रमें इसका निर्देश नहीं किया, क्योंकि सादि-सपर्यवसित काल जघन्य और उत्कृष्टरूपसे तत्प्रमाण उपलब्ध होता है। इस प्रकार उपशामकसे सम्बन्ध रखनेवाली चार मूल गाथाओं की अर्थविभाषा समाप्त हुई । आगे उपशमश्रेणिसे गिरनेवाले जीवका व्याख्यान करते हुए आगे सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * आगे उपशमश्रेणिसे गिरनेवाले जीवकी प्ररूपणा करते हैं । $ १०१. चढ़नेवाला उपशामकका आश्रय लेकर यह सम्पूर्ण प्ररूपणा की । आगे गिरनेवाले - को लक्ष्य में रखकर शेष चार गाथाओंसम्बन्धी प्ररूपणा अधिकृत जाननी चाहिये इसप्रकार प्रकृत विषयको संम्हालनेवाला यह सूत्रवचन है । यहाँ चूणिसूत्रमें गिरनेवाला ऐसा कहनेपर उपशमश्रेणिसे उतरनेवाला जीव लेना चाहिये । उतरनेवालेकी वह प्ररूपणा प्रकारकी है - प्ररूपणाविभाषा और सूत्रविभाषा । उनमेंसे सूत्रपदोंका उच्चारण किये बिना सूत्रसे सूचित होनेवाले अशेष अर्थकी विस्तारसे प्ररूपणा करनेका नाम प्ररूपणाविभाषा है । तथा गाथासूत्रोंके प्रत्येक पदके अर्थके परामर्शद्वारा सूत्रका स्पर्श करनेका नाम सूत्रविभाषा है। उनमें से सर्वप्रथम प्ररूपणा विभाषाका पहले अनुगम करना चाहिये इस बातका ज्ञान करानेकेलिये आगेके सूत्रको कहते हैं * यहाँ सर्वप्रथम प्ररूपणाविभाषा करके पश्चात् सूत्रविभाषा करनी चाहिये । $ १०२. सर्व प्रथम प्ररूपणाविभाषा जाननी चाहिये । उसकी विभाषा करनेपर सूत्रविभाषा
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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