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________________ $ ९८. सुगमं । * तं जहा । ९९. एदं पि सुगमं । तदियगाहाए वत्थपरूवर्णा ४३ * अप्पसत्थउवसामणाए अणुवसंताणि कम्माणि णिव्वाघादेण तोमुहतं । $ १००. एत्थ उवसामणा दुविहा -- पसत्थउवसामणा अप्पसत्थउवसामणा चेदि । तत्थ ताव अप्पसत्थउवसामणाए अणुवसंताणमेसो कालविसेसो सुत्ते णिद्दिट्ठो । तं जहा — उवसमसेटिं चडमाणस्स अणियपिढमसमए अप्पसत्थउवसामणाए णव सयवेदादिकम्ममणुवसंतं जादं, तदो अणियट्टिकरणपढमसमय पहुडि उवरि चडिय पुणो ओदरमाणस्स जाव अणियट्टिचारिमसमओ त्ति ताव अणुवसंतं भवदि । तदो अपुत्रकरणपढमसमयं पत्तस्स अणुवसंतभावो दहो, अप्पसत्थउवसामणाए तत्थ पुणरुपपत्तिदंसणादो । एसो णिव्वाघादकालो । वाघादेण पुण एयसमओ भवदि । तं कथं १ एगो अपुव्वकरणोवसामगो अणियड्डी जादो । तस्समए चेव तिण्णि करणाणि अणुवसंताणि, तत्थेगसमयमच्छियूण से काले देवेसुप्पण्णपढमसमए पुणो वि अपसत्थोवसामणाए पुणरुभावो जादो, तेणेगसमओ भवदि । एवं सव्वेसि पि कम्माणं $ ९८. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे । $ ९९. यह सूत्र भी सुगम है । * अप्रशस्त उपशामनारूपसे अनुपशान्त हुए कर्म निर्व्याघातरूपसे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं । $ १००. प्रकृतमें उपशामना दो प्रकारकी है- प्रशस्त उपशामना और अप्रस्त उपशामना । उनमेंसे सर्वप्रथम अप्रशस्त उपशामनासे अनुपशान्त हुए कर्मोंका सूत्रमें यह काल निर्देश निर्दिष्ट किया गया है। वह जैसे – उपशमश्रेणिपर चढ़नेवाले जीवके अनिवृत्तिकरण के प्रथम समय में अप्रशस्त उपशामनारूपसे नपुंसकवेद आदि कर्म अनुपशान्त हुए । तत्पश्चात् अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयसे लेकर ऊपर चढ़कर पुनः उतरनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयतक अनुपशान्त रहते हैं । तत्पश्चात् अपूर्वकरणके प्रथम समयको प्राप्त हुए उस जीवके अनुपशान्त भाव दिखाई दिया, क्योंकि अप्रशस्त उपशामनाकी वहाँ पुनः उत्पत्ति देखी जाती है, यह निर्व्याधान विषयक काल है । व्याघातकी अपेक्षा तो एक समय काल प्राप्त होता है । शंका- वह कैसे ? समाधान - एक अपूर्वकरण उपशामक जीव अनिवृत्तिकरणको प्राप्त हुआ । वहाँ उसी समय में तीन करण अनुपशान्त हो गये । पुनः वहाँ एकसमय रहकर तदनन्तर समय में देवों में उत्पन्न हुए उस जीवके प्रथम समयमें अप्रशस्त उपशामनाका पुनः उद्भव हो गया, इससे उसका एक
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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