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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे एदस्स गाहापढमावयवस्स अत्थपरूवणा समत्ता । संपहि पढमगाहाविदियावयवस्स अत्थविहासणमुत्तरो सुत्तपबंधो * उवसामो कस्स कस्स कम्मस्सेत्ति विहासा । २३. सुगमं । *तं जहा। २४. सुगममेदं पि पुच्छासुत्तं । * मोहणीयवज्जाणं कम्माणं णत्थि उवसामो । 5 २५. कुदो १ सहावदो चेव । णाणावरणादिकम्माणमुवसामणपरिणामस्स संभवाणुवलंभादो। अकरणोवसामणा देसकरणोवसामणा च तत्थ वि अस्थि त्ति णासंकणिज्जं, पसस्थकरणोवसामणाए एत्थ पयदत्तादो। तम्हा सेसकम्मपरिहारेण मोहणीयस्सेव पसत्थोवसामणाए उवसामगो होदि त्ति घेत्तन्वं । तत्थ वि दंसणमोहणीयपरिहारेण चरित्तमोहणीयस्सेव उवसामगो होदि, तेणेत्थ पयदत्तादो त्ति जाणावणमुत्तरसुत्तणिदेसो * दसणमोहणीयस्स वि गस्थि उवसामो । 5२६. कुदो १ तस्स पुन्वमेव उवसंतत्तादो खीणत्तादो वा, तेणेत्यहियाराअब प्रथम गाथाके दूसरे अवयवको अर्थप्ररूपणाका व्याख्यान करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध है * उपशम किस किस कर्मका होता है इस पदकी विभाषा करते हैं। $ २३. यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। $ २४. यह पृच्छासूत्र सुगम है। * मोहनीयकर्मको छोड़कर शेष कर्मोंका उपशम नहीं होता । $ २५. क्योंकि स्वभावसे ही शेष कर्मोंका उपशम नहीं होता, क्योंकि ज्ञानावरणादि कर्मोके उपशमरूप परिणामकी सम्भावना नहीं पाई जाती। शंका-उन कर्मोकी अकरणोपशामना और देशकरणोपशामना तो होती है ? समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि प्रशस्त करणोपशामना यहाँ अधिकृत है, इसलिये शेष कर्मोका निराकरण करके मोहनीयकर्मका ही प्रशस्तोपशमना द्वारा उपशम होता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये। उसमें भी प्रकृतमें अनधिकृत दर्शनमोहनीयके निषेध द्वारा चारित्रमोहनीयका ही उपशम होता है, क्योंकि वह यहाँ अधिकृत है ऐसा ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रका निर्देश करते हैं * यहाँ दर्शनमोहनीयका भी उपशम नहीं होता। २६. क्योंकि वह पहले ही उपशान्त अथवा क्षीण हो गई है, इसलिये यहाँ उसका
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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