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________________ अणताणुबंधीणं सव्वोवसामणाडभावणिद्देसो भावादो च। तदो संते वि दंसणमोहणीयस्स उवसमसंभवे सो एत्थ ण विवक्खिओ त्ति एसो एदस्स भावत्थो। * अणंताणुपंधीणं पि पत्थि उवसामो । २७. कुदो १ तेसिं पुव्वमेव विसंजोयणं काढूण पच्छा उवसमसेढिसमारोहणसंभवादो। तदो विसंयोजणपयडीणमणंताणुबंधीणमुवसामणाए पत्थि संभवो त्ति सिद्धं । * बारसकसाय-णवणोकसायवेदणीयाणमुवसामो । 5 २८. कुदो ? उवसमसेढीए एदेमि कम्माणं सव्वोवसामणाए परिप्फुडमुवलंभादो । एवमुवसामो कस्स कस्स कम्मस्सेत्ति गाहासुत्तविदियावयवस्स अत्थविहासा समत्ता । संपहि गाहापच्छद्धस्स अत्थविहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ * के कम्मं उवसंतं अणुवसंतं च कं कम्मेत्ति विहासा । २९. सुगमं । * तं जहा। $ ३०. सुत्तमेदं पि पुच्छावक्कं । अधिकार नहीं है । अतः दर्शनमोहनीयका उपशम सम्भव होनेपर भी वह यहां विवक्षित नहीं है यह इस सूत्रका भावार्थ है। * अनन्तानुबन्धियोंका भी उपशम नहीं होता। २७. क्योंकि उनकी पहले ही विसंयोजना करके उपशमश्रेणिपर आरोहण करना सम्भव है। इसलिए विसंयोजनारूप अनन्तानुबन्धी प्रकृतियोंकी उपशामना सम्भव नहीं है यह बात स्वयंसिद्ध है। * बारह कषाय और नौ नोकषायवेदनीयका उपशम होता है। २८. क्योंकि उपशमश्रेणिमें इन कर्मोंका सर्वोपशम स्फूट रूपसे उपलब्ध होता है। इस प्रकार किस-किस कर्मका उपशम होता है' गाथासूत्रके इस दूसरे अवयवके अर्थका विशेष विवरण समाप्त हुआ। अब गाथाके उत्तरार्धके. अर्थका विशेष व्याख्यान करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * 'कौन कर्म उपशान्त होते हैं और कौन कर्म अनुपशान्त रहते हैं। इसकी विभाषा की जाती है। ६ २९. यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे । 5 ३०. यह पृच्छासूत्र भी सुगम है ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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