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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पज्जाओ च बहुवित्थरो अणुवण्णिदो। एसा अकरणोंवसामणा दट्ठव्वा, तत्थेदिस्से पबंधेण परूवणोलंभादो।
.. - $ ८. एवमकरणोवसामणाए अत्थपरूवणं कादूण संपहि करणोवसामणाए परूवणमुवरिमं सुत्तपबंधमाह
के जा सा करणोवसामणा सा दुविहा-देसकरणोवसामणा त्ति वि सव्वकरणोवसामणा त्ति वि ।
९. जा सा पुवुद्दिडा करणोवसामणा सा दुविहा होइ देश-सव्वकरणोवसामणामेदेण । तत्थ देसकरणोवसामणा णाम अप्पसत्थोवसामणादिकरणेहिं देसदो कम्मपदेसाणमुदयादिपरिणामपरमुहीमावेण उवसंतभावसंपायणं । कुदो एदस्स तव्ववएसो चे? ण, तत्थ केसिंचिदेव करणाणं परिमिएसु चेव कम्मपदेसेसु उवसंतभावदंसणेण तव्ववएसोववत्तीए।
१०. अण्णेसिं वक्खाणाइरियाणमहिप्पाओ, ण एवंविहा देसकरणोवसामणा एत्थ विवक्खिया, अकरणोवसामणाए एदिस्से अंतभावभुवगमादो। किंतु अण्णहा देसकरणोवसामणाए अत्थो वत्तव्यो । तं जहा
६ ११. दंसणमोहणीये उवसामिदे उदयादिकरणेसु काणि वि करणाणि उवसंताणि परिणामका वर्णन किया गया है। वहाँ इस अकरणोपशामनाके स्वरूपको जानना चाहिये, क्योंकि वहाँ इसकी प्रबन्धरूपसे प्ररूपणा उपलब्ध होती है।
६८. इस प्रकार अकरणोपशामनाके अर्थका कथन करके अब करणोपशामनाका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* जो वह करणोपशामना है वह दो प्रकारकी है-देशकरणोपशामना और सर्वकरणोपशामना।
१९. जो यह पहले कही गई करणोपशामना है वह देशकरणोपशामना और सर्वकरणोपशामनाके भेदसे दो प्रकारकी है। उनमेंसे अप्रशस्त उपशामना आदि करणोंके द्वारा एकदेश कर्मपरमाणुओंका उदयादि परिणामके परमुखीभावसे उपशान्त भावको प्राप्त होना देशकरणोपशामना है।
शंका-इसका देशकरणोपशामना नाम क्यों है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि वहाँ किन्हीं करणोंके परिमित कर्मप्रदेशोंमें ही उपशान्तपना देखा जाता है, इसलिये इसकी देशकरणोपशामना संज्ञा बन जाती है।
$१०. अन्य व्याख्यानाचार्योंका अभिप्राय है कि इस प्रकारकी देशकरणोपशामना यहाँ विवक्षित नहीं है, क्योंकि इसका अकरणोपशामनामें अन्तर्भाव स्वीकार किया गया है। अतः देशकरणोपशामनाका अन्य प्रकारसे अर्थ कहना चाहिये । यथा
११. दर्शनमोहनीयका उपशम होने पर उदयादि करणोंमेंसे कोई करण उपशान्त हो जाते हैं और कोई करण अनुपशान्त रहते हैं इसलिये यह देशकरणोपशामना कहलाती है। इसका