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________________ ३५५ अस्सकण्णकरणपरूवणा लोहसंजलणमहिकिच्च परूविदा, चउण्हं संजलणाणमक्कमेण भणणोवायाभावादो। तदो मायादिसंजलणेसु वि एसा चेव सेढिपरूवणा णिरवयवमणुगंतव्वा, विसेसाभावादो त्ति पदुप्पाएमाणो इदमाह * जहा लोहस्स तहा मायाए माणस्स कोहस्स च । 5 ४९० गयत्थमेदं सुत्तं । संपहि तम्हि चेव अस्सकण्णकरणद्धापढमसमये चउण्हं संजलणाणमणुभागोदयो एदेण सरूवेण पयदि त्ति जाणावणट्ठमुवरिमं पबंधमाह * उदयपरूवणा। $ ४९१. सुगमं । * जहा। $ ४९२. सुगमं । * पढमसमए चेव अपुव्वफद्दयाणि उद्दिण्णाणि अणुदिण्णाणि च । पुवफद्दयाणं पि आदीदो अणंतभागो उदिण्णो च अणुदिण्णो च । उवरि अणंता भागा अणुदिण्णा । ४९३. एदेण सुत्तेण लदासमाणाणंतिमभागपडिबद्धपुव्वफद्दयसरूवेण पुणो दिखलाई देनेवाली प्रदेशपुजसम्बन्धी श्रेणिप्ररूपणा लोभसंज्वलनको अधिकृत करके कही गई है, क्योंकि चारों संज्वलनोंके एक साथ कथन करनेका कोई उपाय नहीं पाया जाता । इसलिये मायादि संज्वलनोंकी भी यही श्रेणिप्ररूपणा पूरी जाननी चाहिये, क्योंकि इससे उसमें कोई विशेषता नहीं है इस बातका कथन करते हुए इस सूत्रको कहते हैं * जिस प्रकार लोभसंज्वलनकी श्रेणिप्ररूपणा कही है उसी प्रकार माया, मान और क्रोधसंज्वलनकी जाननी चाहिये । ४९०. यह सूत्र गतार्थ है। अब उसी अश्वकर्णकरणका प्रथम समयमें चारों संज्वलनोंके अनुभागोदय इस रूपसे प्रवृत्त होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं * अब उसी अश्वकर्णकरणकालके प्रथम समयमें चारों संज्वलनोंकी उदय प्ररूपणा करते हैं। ६४९१. यह सूत्र सुगम है। * जैसे। $ ४९२. यह सूत्र भी सुगम है। * अश्वकर्णकरणकालके प्रथम समयमें ही अपूर्व स्पर्धक उदीर्ण भी पाये जाते हैं और अनुदीर्ण भी पाये जाते हैं। तथा पूर्व स्पर्धकोंका भी आदिसे लेकर अनन्तवाँ माग उदीणे भी पाया जाता है और अनुदीर्ण भी पाया जाता है । उससे आगे अनन्त अनुभाग बहुभाग अनुदीर्ण ही रहता है। 5 ४९३. लताके समान अनन्तवें भागप्रमाण संज्वलनोंके अनुभागको पूर्व स्पर्धकरूपसे तथा
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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