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________________ खवगसेढीए अपुवफद्दयपरूवणा ३४७ ४८०. एदेण सुत्तेण ओकड्डुक्कड्डणभागहारादो असंखेज्जगुणेण पलिदोवमपढमवग्गमूलादो च असंखेज्जगुणहीणेण पलिदोवमअसंखेज्जमागेण एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरफद्दएसु ओवट्टिदेसु जं भागलद्धं तत्तियमेत्ताणि कोहादिसंजलणाणमपुव्वफद्दयाणि होति त्ति एसो अत्थविसेसो जाणाविदो। तं जहा—'पढमसमयअस्सकण्णकरणकारयस्स' एवं भणिदे पढमसमयअस्सकण्णकरणकारओ जं पदेसग्गमोकडदि तेण पमाणेण कम्मे अवहिरिज्जमाणे जो अवहारकालो ओकड्डुक्कड्डणभागहारसण्णिदो सो उवरिमपदावेक्खाए थोवो त्ति भणिदं होदि । एदम्हादो पुण अपुवफद्दएहिं पदेसगुणहाणिट्ठाणंतरस्स जो अवहारकालो सो असंखेज्जगुणो । तं कधं ? एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरफदयाणि ठविय पुणो तत्तो अपुव्वफद्दयपमाणमेगवारमवहरेयव्वं, एगा च अवहारसलागा हवेयव्वा । एवं पुणो पुणो अवहिरिज्जमाणे ओकड्डुक्कड्डुणभागहारादो असंखेज्जगुणो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो लब्भइ । तदो एसो अवहारकालो पुग्विलादो असंखेज्जगुणो त्ति णिद्दिट्ठो। एसो वुण पलिदोवमपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिमागमेतो त्ति जाणावणटुं पलिदोवमवग्गमूलमसंखेज्जगुणमिदि मणिदं । तदो सिद्धमेवमेदेणे भागहारेण एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरफद्दएसु ओवट्टिदेसु भागलद्धमेत्ताणि अपुव्वफद्दयाणि कोहादिसंजजलणाणं णिवत्तेदि त्ति । एदं च अप्पा प्रथम वर्गमूल असंख्यातगुणा है । $४८०. इस सूत्र द्वारा अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे असंख्यातगुणा और पल्योपमके प्रथम वर्गमूलसे असंख्यातगुणा हीन जो पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है उससे एक गुणहानिस्थानान्तरप्रमाण स्पर्धकोंके भाजित करनेपर जो भाग लब्ध आता है उतने क्रोधादि संज्वलनोंके अपूर्व स्पर्धक होते हैं इस अर्थविशेष का ज्ञान कराया गया है। यथा-'प्रथम समयवर्ती अश्वकर्णकरणकारकके' ऐसा कहनेपर प्रथम समयमें अश्वकर्णकरणकारक जिस प्रदेशपुंजका अपकर्षण करता है उस प्रमाणसे कर्मके अपहृत करनेपर जो अपकर्षण-उत्कर्षण अवहार काल संज्ञावाला अवहारकाल प्राप्त होता है वह उपरिम पदोंकी अपेक्षा स्तोक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। तथा इससे अपूर्व स्पर्धकोंकी अपेक्षा प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका जो अवहार काल है वह असंख्यातगुणा है। शंका-वह कैसे ? समाधान—एक प्रदेशगुणहानि स्थानान्तरके स्पर्धकोंको स्थापित कर पुनः उससे अपूर्व स्पर्धकके प्रमाणको एक बार अपहृत करना चाहिये और एक अवहार काल शलाका स्थापित करनो चाहिये। इस प्रकार पुनः पुनः अपहृत करनेपर अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे असंख्यातगुणा पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग प्राप्त होता है। इसलिये यह अवहार काल पूर्वके अवहार कालसे असंख्यातगुणा है यह निर्दिष्ट किया है। परन्तु यह पल्योपमा प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण है इस बातका ज्ञान करानेके लिये पल्योपमका प्रथम वर्गमूल उससे असंख्यातगुणा है यह कहा है। इसलिए यह सिद्ध हुआ कि इस भागहारसे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरप्रमाण स्पर्धकोंके भाजित करनेपर जो भाग लब्ध आवे उतने क्रोधादि संज्वलनोंके अपूर्व स्पर्धकोंको वह १. ता०प्रतो तेण इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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