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________________ क्षपकश्रेणिमें चढ़ते समय कौन उपयोग होता है इसका अभिप्राय भेदके साथ विशेष खुलासा इसमें कौन प्रकृतियाँ उदयावलिमे प्रविष्ट होती हैं और कौन नहीं इसका निर्देश यहाँसे पहले जिन प्रकृत्तियोंकी बन्धव्युच्छित्ति हो जाती है इसका निर्देश यहाँसे पहले जिन प्रकृतियोंकी उदयम्युच्छित्ति हो जाती हैं इसका निर्देश अन्तरकरण और संक्रामक आगे होगा इसका निर्देश स्थितिकाण्डक घात और अनुभागकाण्डकघात अपूर्वकरणके प्रथम समयसे होने का निर्देश कषायोंका उपशम करनेवाले किसके कितना जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति-काण्डक होता है इसका निर्देश कषायोंकी क्षपणा करनेवाले किसके कितना जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक होता है इसका निर्देश अपूर्वकरणके प्रथम समयमें होनेवाले आवश्यकोंका निर्देश इसके दूसरे समय में उनमें जो भेद पड़ता है उसका निर्देश इसके संख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाने पर निद्रा प्रचलाकी बन्धव्युच्छित्ति का निर्देश क्षपक और उपशम श्रेणि में गुणसंक्रम होनेका निर्देश तदनन्तर इसके ६/७ भाग-वीत जानेपर परभवसम्बन्धी प्रकृतियोंकी बन्ध व्युच्छित्तिका निर्देश इसके अन्तिम समयमें हास्यादि चारकी soयुच्छित्ति होनेका निर्देश प्रथय समयमें होनेवाले अनिवृत्तिकरण आवश्यकोंका निर्देश यहाँ प्रथम समयमें विषम स्थितिकाण्डकघात होता है इसका सकारण निर्देश विषय-सूची १५७ १६१ १६३ १६४ १६५ १६७ १६९ १७१ १७३ १७५ १७७ १७८ १७८ १९९ १७९ १८० इसके दूसरे समय में पूर्वोक्त आवश्यक होते हैं, केवल गुणश्रेणि असंख्यातगुणी होती है इसका निर्देश यहाँ आगे कहाँ कितना स्थितिबन्ध होता है इसका निर्देश इसी प्रसंगसे स्थितिसत्कर्मका निर्देश प्रकृत में अल्पबहुत्वका निर्देश आगे क्रमसे होनेवाले स्थितिबन्धका पुनः निर्देश प्रकृतमें पुनः पुनः अल्पबहुत्वका निर्देश स्थितिबन्धका कर आगे क्रमसे होनेवाले निर्देश आगे इसी विषिसे कहाँ किसका स्थिति सत्कर्म स्थितिबन्धके समान होता है इसका क्रमसे निर्देश आगे स्थिति सत्कर्म विषयक पुनः पुनः अल्पबहुत्वके साथ क्रमसे घटते हुए स्थिति सत्कर्मका निर्देश तदनन्तर कुछ आगे जीनेपर दर्शनावरण की तीन ओर नामकर्मकी दस प्रकृतियों की क्षपणाका क्रम निर्देश तदनन्तर कुछ स्थान जाने पर १२ प्रकृतियोंका बन्धकी अपेक्षा देशघातीकरणका निर्देश संज्वलनोंके तदनन्तर नो नोकषाय और चार अन्तरकरण विधानका निर्देश प्रथम ऐसा करते हुए किसकी कितनी स्थिति करता है इसका निर्देश उत्कीरित अन्तर स्थितियोंमें से किसका कहाँ निक्षेप होता है इसका निर्देश अनन्तर प्रथम समयकृत और द्विसमयकृत कब कहलाता है इसका निर्देश ३५ नपुंसक वेद में आयुक्तकरण संक्रामक कब होता है. इसका निर्देश १८४ १८५ १८६ १८६ १८७ आगे प्रतिसमय असंख्यात समयप्रवद्धों की उदीरणा कहाँसे होती है इसका निर्देश २०० यहाँ सर्वप्रथम मध्यकी आठ कषायोंकी क्षपणाका क्रम निर्देश १९० १९५ १९७ २०० २० २०४ २०५ २०७ २०७
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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