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मानवेदक कालके समाप्त होनेपर क्रोधवेदक कालके प्रथम समय में होनेवाले कार्य इसके शेष कर्मोंके समान गुणश्रेणिनिक्षेप होनेकी सूचना
इसके प्रथम समय में बारह प्रकारकी कषायोंके संक्रमका निर्देश
उसी समय होनेवाले स्थितिबन्धका निर्देश यहाँ कुछ काल बाद जो कार्य होते हैं उनका निर्देश
तदनन्तर समयमें पुरुषवेदके बन्धका निर्देश इसी समय होनेवाले शेष कार्योंका निर्देश कुछ काल बाद स्त्रीवेदका अनुपशामक होता है इसकी निर्देश
इसी कालमें स्थितिबन्धका निर्देश
कुछ काल बाद नपुंसक वेदका अनुपशामक होता है इसका निर्देश
इसके अन्तर्मुहूर्त बाद होनेवाले स्थितिबन्धका निर्देश
यहींसे होनेवाले द्विस्थानीय बन्ध और उदयका निर्देश
उपशमश्रेणिसे गिरनेवालेको बन्धावलिके बाद उदीरणा होने लगनेका निर्देश प्रकृत विषयमें अभिप्रायान्तरका निर्देश अनिवृत्तिकरण गुणस्थानसे अनानुपूर्वी संक्रम और लोभका संक्रम होने लगनेका विधान
यहाँसे लेकर होनेवाला स्थितिबन्ध-सम्बन्धी विशेष निर्देश
आगे स्थितिबन्ध सहित स्थितिबन्धके निर्देश करनेका विधान
अपूर्वकरण गुणस्थानमें होनेवाले कार्योंका निर्देश
अपूर्वकरणके प्रथम समयसे अप्रशस्त उपशामना करण. आदिके उद्घाटित होनेका निर्देश यहींसे हस्यादिकी उदीरणा होने लगनेका
जयधवला
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विधान
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इस गुणस्थानके संख्यात बहुभाग के बीतनेपर निद्रा प्रचलाके बन्ध होनेका निर्देश
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इसके बाद क्रमसे अधः प्रवृत्तकरण के प्राप्त होने पर अवस्थित अन्य गुणश्रेणी निक्षेपके प्रारम्भ करनेका विधान
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मात्र यहाँसे यह गुणहानिनिक्षेप हानि-वृद्धि
यहीसे
और अवस्थानरूप होता है इसका निर्देश ९६ 'अधःप्रवृत्त संक्रमके प्रारम्भ होनेका निर्देश ९७ यहाँ द्वितीयोपशम सम्यक्त्वका कितना काल शेष है इसका निर्देश
इस सम्यकत्वमें छह आवलि काल शेष रहनेपर सासादन गुणस्थानकी प्राप्ति सम्भव है इसका निर्देश
इसके प्राप्त होते समय परिणाम प्रत्ययवश अनन्तानुबन्धी में से किसी एककी उदीरणा हो जाती है इसका निर्देश
इस गुणस्थानमें मरा हुआ जीव मात्र देवगतिको प्राप्त होता है इसका सकारण निर्देश उपशमश्रेणीकी यह प्ररूपणा पुरुष वेद और
क्रोध संज्वलनके उदयकी अपेक्षासे की है। इसका निर्देश आगे पुरुषवेदीके मान संज्वलनकी अपेक्षा प्ररूपण में जो अन्तर पड़ता है उसका निर्देश
आगे पुरुषवेदीके मायाकी अपेक्षा प्ररूपणामें जो अन्तर पड़ता है उसका निर्देश आगे पुरुषवेदीके लोभकी अपेक्षा प्ररूपणामें जो अन्तर प्राप्त होता है इसका निर्देश स्त्रीवेदीकी अपेक्षा विधान
क्षपक श्रेणी टीकाकारका मंगलाचरण
क्षपकश्रेणिमें भी तीन करण किस विधिसे होते हैं इसका निर्देश
सत्कर्मोंकी जो स्थितियां शेष हैं उनको रचनाका निर्देश
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अनुभाग सत्कर्मसम्बन्धी निर्देश अषः प्रवृत्तकरणके अन्त में विवक्षित चार गाथाओंका विशेष ऊहापोह
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नपुंसक वेद की अपेक्षा विधान
जो पुरुषवेद और क्रोध संज्वलनके उदयसे
श्रेणि चढ़ता है उसके प्रकृतमें कालसंयुक्त पदोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्वका निर्देश १२०-१४५ क्षुल्लक भवग्रहण किसके कितने होते हैं इसका निर्देश
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