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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
एवमेदाहिं दोहि पुच्छाहिं गाहापुब्वणिबद्धाहिं ओकडुक्कङ्कणाणं पबुत्तिविसेसो द्विदिअणुभागविसओ पुच्छिदो होदि ।
९ ३८४. 'केसु अट्ठाणं वा' एदेण वि गाहावयवेण केसु हिदिअणुभागविसेसेसु वडि-हाणीहिं विणा अवट्ठाणं होदि ति पुच्छादुवारेण ओकड्डुक्कडणाणमप्पा ओग्गमावेणावट्ठिदाणं द्विदि-अणुभागाणं संभवासंभवविसया परूवणा सूचिदा दट्ठव्वा । 'गुणेण किं वा विसेसेणेति एदेण वि चरिमसुत्तावयवेण वड्डि- हाणि-अवट्ठाणविसेसि - दाणं थोवबहुत विसओ पुच्छाणिद्देसो कओ । संपहि एवंविहत्थ पडिबद्धाए एदिस्से सत्तमीए मूलगाहाए अत्थविहासणं कुणमाणो तत्थ ताव चउन्हं भासगाहाणमत्थित्तपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तमाह—
* एविस्से चत्तारि भासगाहाओ ।
$ ३८५. सुगमं ।
* तासिं समुत्तिणा च विहासा च ।
९ ३८६. तासिं भासगाहाणं समुक्कित्तणापुरस्सरमत्थविहासा कायव्वा ति भणिदं हो । तत्थ ताव पढमाए भासगाहाए समुक्कित्तणं कुणमाणो इदमाह - * पढमभासगाहाए समुत्तिणा ।
निबद्ध इन दो पृच्छाओंके द्वारा अपकर्षण और उत्कर्षणविषयक स्थिति अनुभागसम्बन्धी प्रवृत्ति विशेषको पृच्छा की गई है ।
$ ३८४. 'केसु अवद्वाणं वा' गाथाके इस अवयव द्वारा किन स्थिति और अनुभागविषयक विशेषों में वृद्धि और हानिके बिना अवस्थान होता है इस प्रकार इस पृच्छा द्वारा अपकर्षण और उत्कर्षणके अयोग्यरूपसे अवस्थित स्थिति और अनुभागकी सम्भावना और असम्भावनाविषयक प्ररूपणा सूचित की गई जानना चाहिये । तथा 'गुणेण किं वा विसेसेण' इस प्रकार सूत्रके इस अन्तिम अवयवके द्वारा भी वृद्धि, हानि और अवस्थान विशिष्ट प्रदेशोंके अल्पबहुत्वविषयक पृच्छाका निर्देश किया गया है। अब इस प्रकारके अर्थ में निबद्ध इस सातवीं मूलगाथाकी अर्थविभाषा करते हुए प्रकृतमें सर्वप्रथम चार भाष्यगाथाओंके अस्तित्वका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
* इसकी चार माण्यगाथाऐं हैं ।
$ ३८५. यह सूत्र सुगम है ।
* अब उनकी समुत्कीर्तना और विभाषा करते हैं ।
§ ३८६. उन भाष्यगाथाओंकी समुत्कीर्तनापूर्वक अर्थविभाषा करनी चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है । उनमें से सर्वप्रथम प्रथम भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हुए इस सूत्रवचनको कहते हैं
* उनमेंसे प्रथम भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना इस प्रकार है ।