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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * ओकणादो वाघादेण उक्कस्सिया अधिच्छ्रावणा असंखेज्जगुणा । ९ ३७५ कुदो १ समयूणुक्कस्सट्ठिदिखंडयपमाणत्तादो । * उक्कडुणाद उक्कस्सगो णिक्खेवो विसेसाहिओ । $ ३७६. केत्तियमेत्तेण ? अंतोकोडाकोडिमेत्तेण । किं कारणं १ समयाहिया - वलियसहिदुक्कस्साबाहाए परिहीणचत्तालीस सागरो वमकोडा कोडि मे चुक्कस्सट्ठिदीए एत्थुक्कस्सणिक्खेव भावेण विवक्खियत्तादो । ३०० * उससे व्याघातकी अपेक्षा अपकर्षणकी उत्कृष्ट अतिस्थापना असंख्यात - गुणी है । $ ३७५. क्योंकि यह एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकप्रमाण होती है । विशेषार्थ - जिस कर्मकी जितनी उत्कृष्ट कर्मस्थिति होती है उसकी अपेक्षा अपकर्षणकी एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकप्रमाण व्याघ्यातविषयक उत्कृष्ट अतिस्थापना होती है जो स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिके पतनके समय अग्र स्थितिकी प्राप्त होती है । खुलासा इस प्रकार हैं-समझो किसी संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवने चारित्रमोहनीय कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध किया । पश्चात् बन्धावलिके बाद अन्तः कोड़ा कोड़ी सागरोपमप्रमाण स्थितिको छोड़कर उसने शेष स्थितिका काण्डकघात करनेके लिये आरम्भ करते हुए अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उसकी फालियाँ करके प्रत्येक समय में एक-एक फालिका पतन प्रारम्भ किया । ऐसा करते हुए जबतक उपान्त्य फालिका पतन नहीं होता तबतक प्रत्येक फालिके पतनके समय निर्व्याघातरूप एक आवलिप्रमाण ही अतिस्थापना प्राप्त होती है, क्योंकि प्रत्येक फालिके उपरितन परमाणुपुंजका नीचे एक आवलिप्रमाण अतिस्थापनाको छोड़कर शेष स्थिति में उसका निक्षेप होता रहता है, इसलिए इसे निर्व्याघात अतिस्थापना ही समझनी चाहिये । मात्र अन्तिम फालिका जब काण्डकघातके अन्तिम समयमें पतन होता है तब उक्त फालिकी उत्कृष्ट अतिस्थापना एक समय कम एक काण्डप्रमाण प्राप्त होती है, क्योंकि इस फालिकी अग्र स्थितिका पतन उसके नीचे उससे कम उस विवक्षित काण्डकके नीचेकी किसी भी स्थितिमें न होकर अन्तः कोड़ा कोड़ी सागरोपमप्रमाण स्थिति में होता है, इसलिए यह व्याघातविषयक उत्कृष्ट अतिस्थापना जाननी चाहिये । तथा इस अग्र स्थिति से नीचेके निषेकका पतन होनेपर इसकी अतिस्थापना दो समय कम उत्कृष्ट काण्डकप्रमाण प्राप्त होती है । यह भी व्याघात विषयक अतिस्थापना है । किन्तु इसमें एक समय कम हो जाने से यह मध्यम अतिस्थापना कही जायगी। इसी प्रकार आगे-आगे अतिस्थापना में एक-एक समय कम होते हुए जहाँ जाकर एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण अतिस्थापना प्राप्त होती है वहाँ तक व्याघातविषयक अतिस्थापना जाननी चाहिये। यह इसका जघन्य भेद है । प्रसंगसे इतना विशेष जानना चाहिये । * उससे उत्कर्षणकी अपेक्षा उत्कृष्ट निक्षेप विशेष अधिक है । ९ ३७६. शंका - कितना अधिक है ? समाधान --- अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण अधिक है, क्योंकि एक समय और एक आवलि अधिक उत्कृष्ट आबाधासे हीन चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति यहाँ उत्कृष्ट निक्षेप - रूपसे विवक्षित है ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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