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________________ २८७ खवगसेढीए छट्ठीमूलगाहा * एत्तो छट्ठीए मूलगाहाए समुकित्तणा। 5 ३४३. ओववृणविदियमूलगाहा चेव संकामणपवट्ठगस्स चदुहिं मूलगाहाहिं सह जोइज्जमाणा छट्ठी मूलगाहा ति भण्णदे। तिस्से समुक्कित्तणा इदाणिं कीरदि त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थसंगहो। * तं जहा। 5 ३४४. सुगमं । (१०२) एक्कं च हिदिविसेसं तु द्विदिविसेसेसु कविसु वढे दि । हरसेवि कदिसु एगं तहाणभागेसु बोद्धव्वं ॥१५५।। 5 ३४५. एसा छट्ठी मूलगाहा द्विदि-अणुभागविसयाणमोकड्डुक्कड्डणाणं जहण्णुक्कस्सणिक्खेवपमाणावहारणट्ठमोइण्णा । ण च एसो अत्थो पुविल्लमूलगाहापुव्वद्धे चेव पडिबद्धो ति एदिस्से णिप्फलत्तमासंकणिज्जं, पुन्विन्लगाहापुव्वद्ध तेसिमइच्छावणापरूवणाए चेव पहाणभावेण पडिबद्धत्तोवलंभादो। संपहि एदस्स गाहासुत्तस्स किंचि अवयवत्थपरामरसं कस्सामो। तं जहा—'एक्कं च द्विदिविसेसं तु' एवं भणिदे एक्कं द्विदिविसेसमुक्कड्डेमाणो कदिसु द्विदिविसेसेसु वड्ढदि, किमेक्किस्से, * अब आगे छटी मूलगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं । $ ३४३. संक्रामणप्रस्थापकके चार मूलगाथाओंके साथ की गई अपवर्तनसम्बन्धी दूसरी मूलगाथा ही छटी मूलगाथा कही जाती है। उसकी समुत्कीर्तना इस समय करते हैं इस प्रकार यह यहाँ इस सूत्रके अर्थका तात्पर्य है। * वह जैसे। 5 ३४४. यह सूत्र सुगम है। (१०२) एक स्थितिविशेषको कितने स्थितिविशेषोंमें बढ़ाता है तथा एक स्थितिविशेषको कितने स्थितिविशेषोंमें घटाता है। इसी प्रकार अनुभागोंके विषय में भी जानना चाहिये ॥१५५॥ ६३४५. यह छटी मूलगाथा स्थिति और अनुभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणके जघन्य और उत्कृष्ट निक्षेपके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये अवतीर्ण हुई है । यह अर्थ पिछली मूलगाथाके पूर्वार्धमें ही निबद्ध है, इसलिये यहाँ इसकी निष्फलताकी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि पिछली गाथाके पूर्वार्धमें उन उत्कर्षण और अपकर्षणविषयक अतिस्थापनाकी प्ररूपणा ही प्रधानरूपसे निबद्ध उपलब्ध होती है। अब इस गाथासूत्रके अवयवोंके अर्थका किंचित् परामर्श करेंगे। वह जैसे-'एक्कं च द्विदिविसेसं तु' ऐसा कहनेपर एक स्थितिविशेषको उत्कर्षित करता हुआ उसे कितने स्थितिविशेषोंमें बढ़ाता है, क्या एक स्थितिविशेषमें बढ़ाता है या दो
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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