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खवगसेढीए पंचममूलगाहाए पढमभासगाहा
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$ ३१८. संपहि एवंविहत्थपडि बद्धस्सेदस्स गाहासुत्तस्स पुच्छामेत्तेणेव सूचिदासेयदत्थवित्थरस विहासाए कीरमाणाए तत्थ तिणि भासगाहाओ अस्थि ति जाणावेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
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* एत्थ तिण्णि भासगाहाओ ।
$ ३१९. सुगमं ।
* तासिं समुत्तिणं विहासणं च वत्तइस्लामो । तं जहा । ९ ३२०. सुगममेदं भासगाहाणमवयारावेक्खं पुच्छावक्कं ।
* पढमाए गाहाए समुक्कित्तणा ।
$ ३२१. सुगमं ।
(९९) वट्टणा जहण्णा आवलिया ऊणिया तिभागेण । एसा द्विदी' जहण्णा तहाणुभागेसणंतेसु || १५२।।
$ ३२२ एसा पढमभासगाहा मूलगाहापुव्वद्धपडिबद्धाणं डिदिअणुभागविसयाणमोकड्डुक्कड्डणाणं जहण्णुक्कस्साइच्छावणाणिक्खेवपमाणावहारणमोइण्णा, ओकड्डणाविसयजहण्णाइच् छावणाणिद्द समुहेण सेस से सपरूवणाए देसामा सयभावेणेदिस्से पवत्तिदंसणादो । तं जहा - 'ओवट्टणा जहण्णा' एवं भणिदे डिदि -
'च' शब्द द्वारा परप्रकृतिसंक्रमको ग्रहण कर लेना चाहिये ।
$ ३१८. अब इस प्रकारके अर्थसे सम्बन्ध रखनेवाले तथा पृच्छा मात्रसे ही अशेष अर्थोके विस्तारको सूचित करनेवाले इस गाथासूत्रकी विभाषा करनेपर उस विषयमें तीन भाष्यगाथाएँ हैं इस बातका ज्ञान कराते हुए आगे सूत्रको कहते हैं
* प्रकृत गाथासूत्रके विषय में तीन भाष्यगाथाएँ हैं ।
$ ३१९. यह सूत्र सुगम है ।
* अब उनकी समुत्कीर्तना और विभाषाको बतलावेंगे । वह जैसे ।
$ ३२०. भाष्यगाथाओंके अवतारको अपेक्षा रखनेवाला यह पृच्छावाक्य सुगम है ।
* अब प्रथम भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं ।
$ ३२१. यह सूत्र सुगम है ।
(९९) तीसरे भागसे हीन एक आवलिप्रमाण जघन्य अपवर्तना होती है । यह सब स्थितियोंमें जघन्य अपवर्तना है । तथा अनुभाग विषयक जघन्य अपवर्तना अनन्त स्पर्धकों में जाननी चाहिये || १५२ ||
$ ३२२. यह प्रथम भाष्यगाथा मूलगाथाके पूर्वार्धसे सम्बन्ध रखनेवाले स्थिति और अनुभागविषयक अपकर्षण और उत्कर्षणके जघन्य और उत्कृष्ट अतिस्थापना और निक्षेपके प्रमाणके अवधारण करनेके लिए आई है, क्योंकि अपकर्षणाविषयक जघन्य अतिस्थापना के निर्देश