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________________ जवधवला सहिदे कसायपाहुडे $ २८१ पदेसग्गेण णिहालिज्जमाणे बंधोदय संकमाणं समाणकालभावीणं थोवबहुत्तमेवं' होदिति वृत्तं होदि । तत्थ बंधो थोवो त्ति वृत्ते पुरिसवेदादिसु जस्स वा तस्स वा बज्झमाणस्स कम्मस्स णवकबंधो एगसमयपबद्धमेत्तो होतॄण थोवो ति घेत्तव्वो । 'उदओ असंखेज्जगुणो' एवं भणिदे वेदिज्जमाणस्स जस्स वा तस्स वा आउगवज्जस्स कम्मस्स उदओ गुणसेढीगो बुच्छा माहप्पेणासं खेज्जसमयपबद्धमेत्तो हो दूणासंखेज्जगुणो जादो । 'संकमो असंखेज्जगुणो' एवं भणिदे जेसिं गुणसंकमो अस्थि तेसिं गुणसंकमदब्वं जेसिं च अधापवत्त संकमो तेसिमधापवत्तसंकमदव्वमसंखेज्जसमयपबद्धपमाणं होण पुव्विल्लादो उदयदव्वादो असंखेज्जगुणमिदि घेत्तन्वं । होदु णाम जेसिं गुणसंकमो अत्थि तेसिं गुणसंकमदव्वमुदयादो असंखेज्जगुणमिदि गुणसंकमभागहारादो ओकड्डुक्कड्डणभाग हारस्सा संखेज्जगुणत्तमस्सियूण तत्थ तहाभावसिद्धीए विसंवादाभावादो | अधापवत्तसंकमदव्वस्स पुण उदयगदगुणसेढीगोकुच्छदन्त्रादो असंखेज्जगुणत्तणिदेसो ण घडदे, सव्वत्थोकड्डुक्कड्डणभागहारादो अधापवत्तभाग हा रस्सा संखेज्जगुणत्तदंसणादो त ? एत्थ परिहारो उच्चदे- -ण ओकडिदसव्बदव्वं गुणसेटीए चेव णिवददि, तदसंखेज्जदिभागस्सेव तत्थ णिक्खेवदंसणादो । तदो तब्भागहारपाम्मेण उदयादो संकमदव्वस्सा संखेज्जगुणत्त मेदं ण विरुज्झदि त्ति घेत्तव्वं । २६४ $ २८१. प्रदेशपु की अपेक्षा देखनेपर समान कालभावी बन्ध, उदय और संक्रमका अल्पबहुत्व इस प्रकार होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । सूत्रमें 'बंधो थोवो' ऐसा कहनेपर पुरुष - वेद आदिमेंसे जिस किसी बंधनेवाले कर्मका एक समयप्रबद्धप्रमाण नवकबन्ध होकर स्तोक होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिये । 'उदओ असंखेज्जगुणो' ऐसा कहनेपर वेदे जानेवाले आयुकर्मको छोड़कर जिस किसी कर्मका उदय गुणश्र णिगोपुच्छाके माहात्म्यवश असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होकर असंख्यातगुणा हो गया है । 'संकमो असंखेज्जगुणो' ऐसा कहनेपर जिन कर्मोंका गुणसंक्रम होता है उनका संक्रमद्रव्य और जिन कर्मोंका अधःप्रवृत्तसंक्रम होता है उनका अधःप्रवृत्तसंक्रमद्रव्य असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होकर पूर्वके उदयद्रव्यसे असंख्यातगुणा होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिये । शंका - जिन कर्मोंका गुणसंक्रम होता है उनका गुणसंक्रमद्रव्य उदयद्रव्यकी अपेक्षा असंख्यातगुणा होओ, क्योंकि गुणसंक्रमभागहारसे अपकर्षण- उत्कर्षण भागहार असंख्यातगुणा है, अतः उसका आलम्बन लेकर वहाँ उस प्रकारकी सिद्धि होनेमें विसंवाद नहीं पाया जाता, परन्तु उदयप्राप्त गुण णिगोपुच्छाके द्रव्यसे अधःप्रवृत्तसंक्रमद्रव्य असंख्यातगुणा है यह निर्देश घटित नहीं होता, क्योंकि सर्वत्र अपकर्षण- उत्कर्षण भागहारसे अधःप्रवृत्त भागहार असंख्यातगुणा देखा जाता है ? समाधान- यहाँ इस शंकाका परिहार करते हैं, ऐसा नियम है कि अपकर्षित सम्पूर्ण द्रव्य गुण में ही निक्षिप्त नहीं होता है क्योंकि उसके असंख्यातवें भागका ही गुणश्रेणिमें निक्ष ेप देखा जाता है, इसलिये उस भागहारकी प्रधानतावश उदयसे संक्रमद्रव्य असंख्यातगुणा है इस प्रकार यह कथन विरुद्ध नहीं है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये । १. प्रतिषु - मेव इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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