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खवगसेढोए तदियमूलगाहाए विदियभासगाहा
$ २७७. सुगममेदं ।
(९१) बंधेण होइ उदओ अहिओ उदएण संकमो अहिओ । गुणसेढी असंखेज्जा च पदेसग्गेण बोद्धव्वा ॥ १४४॥
$ २७८. एदीए विदियभासगाहाए पदेसविसयाणं बंधादीणं थोवबहुत्तमुव दव्वं । बंधादो उदयस्स उदयादो संकमस्स असंखेज्जगुणाए सेटीए अहियभावस् मुक्तकंठमेत्थुव संसादो। एत्थ पच्छद्धे एवं पदसंबंधो कायन्वो — पदेसग्गेण विसेसिदाणं बंधादिपदाणं गुणसेढी असंखेज्जगुणा चैव बोद्धव्वा, पयदविसये पयारंतरा - संभवादोति । एत्थ 'गुणसेटि' त्ति वृत्ते गुणगारपंती गहेयव्त्रा । संपहि एदिस्से गाहाए विहासणट्ठमुवरिमं पबंधमाह
* विहासा ।
$ २७९. सुगमं ।
२६३
* जहा ।
$ २८०. सुगमं ।
* पदेसग्गेण बंधो थोवो । उदयो असंखेज्जगुणो । संकमो असंखेजगुणो ।
$ २७७. यह सूत्र सुगम है ।
(९१) प्रदेश की अपेक्षा बन्धसे उदय अधिक होता है और उदयसे संक्रम अधिक होता है, अतः प्रकृतमें गुणश्रेणि असंख्यातगुणी जाननी चाहिये ॥ १४४ ॥
$ २७८. इस दूसरी भाष्यगाथा द्वारा प्रदेशविषयक बन्धादिके अल्पबहुत्वको उपदिष्ट जानना चाहिये, क्योंकि बन्धसे उदय और उदयसे संक्रम असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे अधिक होता है इसका मुक्तकण्ठ प्रकृतमें उपदेश देखा जाता है । यहाँ उत्तरार्धमें इस प्रकार पदसम्बन्ध करना चाहियेप्रदेश की अपेक्षा विशेषताको प्राप्त बन्धादिक पदोंकी गुणश्र ेणि असंख्यातगुणी ही जाननी चाहिये । यहाँपर 'गुणसेढि' ऐसा कहनेपर गुणकारपंक्ति ग्रहण करनी चाहिये । अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा करनेके लिये इस सूत्र प्रबन्धको कहते हैं
* अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं ।
$ २७९. यह सूत्र सुगम है ।
* जैसे ।
$ २८०. यह सूत्र सुगम है ।
* प्रदेश की अपेक्षा बन्ध सबसे स्तोक होता है । बन्धसे उदय असंख्यात - गुणा होता है और उदयसे संक्रम असंख्यातगुणा होता है ।