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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
पयारंतरपरिहारेणानंतगुणा चेव होइ ति भणिदं होदि । एत्थ 'अणुभागे' ति णिसो एदस्स थोवबहुत्तस्स तव्विसयत्त जाणावणफलो ति णिच्छेयव्वो । संपहि एवंविहमेदिस्से गाहाए अत्थं विहासिदुकामो चुण्णित्तयारो विहासागंथमुत्तरं भण
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* विहासा ।
$ २७३. सुगमं ।
* अणुभागेण बंधो थोवो ।
२७४. कुदो १ पच्चग्गबंधसरूवत्तादो ।
* उदओ अनंतगुणो ।
$ २७५. कुदो ? चिराणसंताणु माग सरूवत्तादो ।
* संकमो अनंतगुणो ।
२७६. किं कारणं ? अणुभाग संतकम्ममुदए णिवदमाणं अनंतगुणहीणं होण णिवददि । संकमो पुण चिराणसंतकम्मं तदवत्थं चेव होतॄण परपयडीए संकमदि, तेण कारणातगुणो संकमो जादो । घादिकम्मविवक्खाए एदमप्पाबहुअं भणिदं, अघादिकम्माणं पि जाणिदूण वत्तत्व्वं । एवं पढमभासगाहाए अत्थविहासा समत्ता ।
* विदियाए भासगाहाए समुक्कित्तणा ।
बन्धादिककी गुणकारश्रेणि अन्य प्रकारसे न होकर अनन्तगुणी ही होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । सूत्रमें 'अणुभागे' इस पदका निर्देश इस अल्पबहुत्वके उसके विषयका ज्ञान करानेके प्रयोजनसे किया गया है ऐसा निश्चय करना चाहिये। अब इस गाथाके इस प्रकारके अर्थकी विभाषा करनेकी इच्छासे चूर्णिसूत्रकार आगे विभाषा ग्रन्थको कहते हैं
* अब भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं ।
$ २७३. यह सूत्र सुगम है ।
अनुभाग की अपेक्षा बन्ध सबसे स्तोक होता है ।
*
$ २७४. क्योंकि यह तत्काल होनेवाले बन्धस्वरूप है ।
* बन्धसे उदय अनन्तगुणा होता है ।
$ २७५. क्योंकि यह चिरकालीन अनुभागस्वरूप है । * उदयसे संक्रम अनन्तगुणा होता है ।
$ २७६. क्योंकि अनुभागसत्कर्म उदयमें प्राप्त होता हुआ अनन्तगुणा हीन होकर ही प्राप्त होता है, परन्तु संक्रम चिरकालीनसत्कर्म तदवस्थ होकर ही परप्रकृतिरूपसे संक्रमित होता है, इस कारण संक्रम अनन्तगुणा हो जाता है । यहाँ घातिकर्मोंकी विवक्षामें यह अल्पबहुत्व कहा है । तथा अघातिकर्मोंका जानकर कहना चाहिये। इस प्रकार प्रथम भाष्यगाथाकी अर्थविभाषा समाप्त हुई ।
* अब दूसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं ।