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________________ खवगसेढीए तदियमूलगाहाए तदियभासगाहा २६५ $ २८२. एवं विदियभासगाहाए अत्थविहासं समाणिय संपहि तदियभासगाहाए जहावसरपत्तमत्थविहासणं समुक्कित्तणं च कुणमाणो उत्तरं सुत्तपबंधमाह - * तदियाए भासगाहाए समुक्कित्तणा । $ २८३. सुगमं । (९२) उदओ च अणंतगुणो संपहिबंधेण होइ अणुभागे । सेकाले उदयादो संपहिबंधो अनंतगुणो ॥ १४५ ॥ $ २८४. एसा तदियभासगाहा बंधोदयपदाणमणुभागविसयाणं कालेण विसेसियूण थोवबहुत्त परूवणट्टमोइण्णा । तं जहा - 'उदओ च अनंतगुणो' एवं भणिदे वट्टमाणसमयपबद्धादो वट्टमाणसमये उदओ अनंतगुणो त्ति दट्ठव्वो । किं कारणं १ चिराणसंत सरूवत्तादो | जइ वि एसो अत्थो पुव्विल्लभासगाहादो चेव अवगओ तो वि दस्साणुवादं काढूण तदणंतरसमयबंधोदयाणमेदेणे सह सण्णियासकरणमेसो गाहापुव्वद्धो भणिदो । 'से काले उदयादो' एवं भणिदे णिरुद्धसमयादो तदनंतरोवरिमसमए जो उदओ अणुभागविसओ तत्तो एसो संपहियसमयपत्रद्धो अनंतगुणोत्त दट्ठव्वो । कुदो एवं चे १ समए समए अणुभागोदयस्स विसोहिपाहम्मेणानंतगुण $ २८२. इस प्रकार दूसरी भाष्यगाथाको अर्थविभाषा समाप्त करके अब तीसरी भाष्यमाथाको अवसरके अनुसार प्राप्त हुई अर्थविभाषा और समुत्कीर्तना करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * अब तीसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं । ९ २८३. यह सूत्र सुगम है । (९२) अनुभागकी अपेक्षा वर्तमानकालीन बन्धसे वर्तमानकालीन उदय अनन्तगुणा होता है । तथा तदनन्तर समयमें होनेवाले उदयसे वर्तमान समयमें होनेवाला बन्ध अनन्तगुणा होता है ।। १४५ ।। $ २८४. यह तीसरी भाष्यगाथा कालको विशेषण करके अनुभागविषयक बन्ध और उदयपदोंके अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिए अवतरित हुई है । वह जैसे – 'उदओ अनंतगुणो' ऐसा कहने पर वर्तमान समय में होनेवाले बन्धसे वर्तमान समयमें होनेवाला उदय अनन्तगुणा है ऐसा जानना चाहिये, क्योंकि उदय चिरकालीन सत्कर्मस्वरूप है । यद्यपि इस अर्थका पूर्वोक्त भाष्यगाथासे ही ज्ञान हो जाता है तो भी इस अर्थका अनुवाद करके तदनन्तर समयमें होनेवाले बन्ध और उदयके साथ इसका सन्निकर्ष करनेके लिये इस गाथाके पूर्वार्धको कहा है । 'से काले उदयादो' ऐसा कहने पर विवक्षित समयसे तदनन्तर आगेके समय में जो अनुभागविषयक उदय होता है उससे यह वर्तमान समयमें होनेवाला बन्ध अनन्तगुणा है ऐसा जानना चाहिये । शंका- ऐसा किस कारणसे है ? समाधान—क्योंकि समय-समय में अनुभागका उदय विशुद्धि की प्रधानतावश अनन्तगुणी १. ता० प्रती - पबंधोदयाणमेसो इति पाठः । ३४ ·
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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