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खवगसेढीए विदियमूलगाहाए णवमभासगाहा
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गाहापुव्व पच्छद्धे णिबद्धस्स समुवलद्धीदो । संपहि एवंविहमेदस्स गाहासुत्तस्स अत्थं विद्दासेमाणो चुण्णिसुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
* एदिस्से तदियाए गाहाए विहासा ।
$ २४४. सुगमं ।
* जहा ।
$ २४५. सुगमं ।
* इत्थीवेदं णव सयवेदं च पुरिसवेदे संछुहदि, पण अण्णत्थ । $ २४६. सुगमं ।
* सत्त णोकसाये कोधे संछुहृदि, ण अण्णत्थ ।
$ २४७. सुगममेदं पि सुत्तं ।
(८६) कोहं च छुहइ माणे माणं मायाए णियमसा छुहइ । मायं च छुहइ लोहे पडिलोमो संकमो णत्थि || १३९ || $ २४८. एदीए चउत्थभासगाहाए कसायाणमाणुपुव्वीसंकमो पुव्विल्लगाहाए असंगहिदो परूविदो त्ति दट्ठव्वो । एत्थ 'पडिलोमो संकमो णत्थि ' त्ति वृत्ते णव सय
उत्तरार्ध में निबद्ध हुए इस अर्थकी स्पष्टरूपसे उपलब्धि होती है । अब इस प्रकार इस गाथा - सूत्रके अर्थकी विभाषा करते हुए आगे चूर्णिसूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अब इस तीसरी माष्यगाथाकी विभाषा करते हैं ।
$ २४४. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे
$ २४५. यह सूत्र सुगम है ।
* स्त्रीवेद और नपुंसकवेदको पुरुषवेदमें संक्रमित करता है, अन्यत्र नहीं ।
$ २४६. यह सूत्र सुगम है ।
* सात नोकषायोंको क्रोधसंज्वलनमें संक्रमित करता है, अन्यत्र नहीं ।
$ २४७. यह सूत्र भी सुगम है ।
(८६) संज्वलत क्रोधको नियमसे संज्वलनमानमें संक्रमित करता है, संज्वलनमानको नियमसे संज्वलन मायामें संक्रमित करता है और संज्वलन मायाको संज्वलन लोभमें संक्रमित करता है । उक्त १३ प्रकृतियोंका प्रतिलोम संक्रम नहीं होता ॥१३९॥ $ २४८. कषायोंके आनुपूर्वी संक्रमको पहलेको भाष्यगाथामें संग्रह नहीं किया था उसका इस चौथी भाष्यगाथामें प्ररूपण किया ऐसा. जानना चाहिये । यहाँपर 'पडिलोमो