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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
माणसंजलणम्मि संछुहियूण तं च मायासंजलणे संकामिय पुणो तं पि लोहसंजलणे पक्खविय लोहसंजलणमप्पणो चेव सरूवेण खवेदि ति एसो एदिस्से गाहाए समुदायत्थो । संपहि एदिस्से गाहाए सेसावयवा सुगमा त्ति काढूण 'वेदादि' चि एदस्स चैव पदस्स किंचि विवरणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
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* वेदादिति विहासा । $ २४१. सुगमं ।
* णवं सयवेदादी संछुहृदि ति अत्थो ।
$ २४२. व सयवेदमादिं काढूण जहाकमं तेरस पयडीओ खवेदि त्ति एवंविहो जो अत्थो सो 'वेदादि' ति एदेण सुत्तपदेण जाणाविदो ति भणिदं होह । सेसं सुगमं । संपहि पढम - विदियभासगाहाहिं सामण्णेण णिदिस्साणुपुथ्वी संकमस्स विसेसियूण परूवणद्वमुवरिमदोभासगाहाओ भणिदाओ । तं जहा
(८५) संछुहदि पुरिसवेदे इत्थीवेदं णवं सयं चेव ।
सत्तेव णोकसाये णियमा कोहम्हि संछुहदि ॥ १३८॥
$ २४३. एदीए तदियभासगाहाए णवण्हं णोकसायाणमेदीए परिवाडीए संछोहगो होदित्ति जाणाविदं । इत्थि - णव सयवेदाणं पुरिसवेदे चैव णियमा संछोहणा, सत्तणोकसायाणं च णियमा कोहसंजलणे चैव संछोहणा चि एदस्सत्थस्स परिष्फुडमेव
में संक्रमित कर, तथा उसको मानसंज्वलनमें संक्रमित कर और उसे मायासंज्वलनमें संक्रमित कर पुनः उसे भी लोभसंज्वलनमें प्रक्षिप्त कर लोभसंज्वलनका अपने स्वरूपसे ही क्षय करता है। इस प्रकार यह इस गाथाका समुच्चयरूप अर्थ है । अब इस गाथाके शेष पद सुगम है ऐसा कर 'वेदादी' इस पदका ही किंचित् विवरण करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* 'वेदादी' इस पदकी विभाषा करते हैं ।
$ २४१. यह सूत्र सुगम है ।
* नपुंसकवेदसे लेकर संक्रान्त करता है यह इस पदका अर्थ है ।
$ २४२. नपुंसकवेदसे लेकर क्रमसे तेरह प्रकृतियोंकी क्षपणा करता है इस प्रकार जो अर्थ है उसका 'दादी' इस सूत्र पद द्वारा ज्ञान कराया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शेष कथन सुगम है। अब प्रथम और दूसरी भाष्यगाथाओं द्वारा सामान्यसे निर्दिष्ट हुए आनुपूर्वी संक्रमको विशेष करके कथन करनेके लिये आगेकी दो भाष्यगाथाओंका कथन किया है । वह जैसे
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(८५) स्त्रीवेद और नपुंसकवेदको पुरुषवेदमें ही संक्रमित करता है तथा सात नोकषायको नियमसे क्रोधसंज्वलनमें संक्रमित करता है || १३८ ||
$ २४३. इस तीसरी भाष्यगाथामें नौ नोकषायोंका इस परिपाटीसे संक्रामक होता है यह ज्ञान कराया गया है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका पुरुषवेदमें ही नियमसे संक्रम होता है । और सात नोकषायोंका नियमसे क्रोधसंज्वलनमें ही संक्रम होता है इस प्रकार गाथा. पूर्वार्ध और