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________________ खवगसेढोए सत्तणोकसायक्खवणाए कज्जविसेसपरूवणा २१५ १४६. सुगमं । * एदेण कमेण ताव जाव सत्तण्हं णोकसायाणं संकामयस्स चरिमहिदिवंधो त्ति । १४७. एदम्मि अवत्थंतरे द्विदिबंधोसरण-द्विदिखंडयपरूवणाए अणंतरपरूविदो चेव कमो, ण एत्थ किंचि णाणत्तमत्थि त्ति भणिदं होइ । संपहि सत्तण्हं णोकसायाणं संकामयस्स चरिमसमए द्विदिबंध-हिदिसंतकम्मपमाणावहारणट्ठमुवरिमं सुत्तपबंधमाह-- * सत्तण्हं णोकसायाणं संकामयस्स चरिमो हिदिबंधो पुरिसवेदस्स अट्ट वस्साणि । ६१४८. संखेज्जवस्ससहस्सियादो पुव्वणिरुद्धट्ठिदिबंधादो जहाकममसंखेज्जगुणहाणीए (१)परिहाइदूण एदम्मि उद्देसे अट्ठवस्सपमाणो पुरिसवेदस्स द्विदिबंधो जादो त्ति भणिदं होदि । * संजलणाणं सोलस वस्साणि । $ १४९. सुगममेदं । * सेसाणं कम्माणं संखेजाणि वस्ससहस्साणि हिदिबंधो । १५०. सुगममेदं पि सुत्तं । ६ १४६. यह सूत्र सुगम है। * इस क्रमसे तबतक जाता है जब जाकर सात नोकषायोंके संक्रामकका अन्तिम स्थितिबन्ध प्राप्त होता है। $ १४७. इस अवस्थाके मध्यमें स्थितिबन्धापसरण और स्थितिकाण्डकोंकी प्ररूपणाका क्रम अनन्तर प्ररूपित ही है, इस विषयमें यहाँ कुछ भी नानापन नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब सात नोकषायोंके संक्रामकके अन्तिम समयमें स्थितिबन्ध और स्थितिसत्कर्मके प्रमाणका अवधारण करनेके लिये आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * सात नोकषायोंके संक्रामकके पुरुषवेदका अन्तिम स्थितिबन्ध आठ वर्षप्रमाण होता है। $ १४८. पूर्वमें निरुद्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्धसे यथाक्रम असंख्यात गुणहानि द्वारा घटाकर इस स्थानमें पुरुषवेदका स्थितिबन्ध आठ वर्षप्रमाण हो जाता है यह उक्त सूत्र द्वारा कहा गया है। * संज्वलन कर्मोंका सोलह वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है । $ १४९. यह सूत्र सुगम है। * शेष कर्मोंका संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिवन्ध होता है । $ १५०. यह सूत्र भी सुगम है।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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