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जवधवलासहिदे कसायपाहुडे
* एदेण कमेण संखेज्जाणि ट्ठिदिखंडय सहस्त्राणि गदाणि । * तदो असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरणा ।
$ ११४. देणाणंतरपविदेण अप्पा बहुअविहाणेण द्विदिबंध -ट्ठिदिसंतकम्मे सु पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागिएसु सन्वेसि कम्माणमसंखेज्जगुणहाणीए पयट्टमाणेसु तदो परिणामपाम्मेण सव्वेसि कम्माणं वेदिज्जमाणाणमसंखेज्जलोग पडिभागिया उदीरणा णस्सियूण असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरणा पारद्धा ति एसो एत्थ सुत्तत्थसंगहो । एवमसंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरणमेत्थाढविय पुणो वि संखेज्जेसु हिदिखंडसहस्से द्विदिबंधोसरणसहगयेसु पादेककमणुभागखंडय सहस्साविणाभावी गदेसु तम्मि उद्देसे जो पबुतिविसेसो तणिद्देसकरणडुमुर्वारमो सुत्तपबंधो
* तदो संखेज्जेसु हिदिखंडयसहस्सेसु गदेसु अट्ठण्हं कसायाणं संकामगो ।
$ ११५. कुदो ? अप्पसत्थयराणं तेसिं पुव्वमेव खवणापवतीए विसेसघादवसेण विप्पडिसेहाभावादो । एत्थ संकामगो त्ति वृत्ते अटुकसायाणं खवणाए पट्टबगो जादो ति अत्थो घेत्तव्वो । एवमेदेसिमकसायाणं संकामणमाढविय ट्ठिदिखंडयपुधत्तेण णिम्मूलमेदेसिं संकामगो जादो त्ति पदुप्पायणफलमुत्तरसुतं -
* इस क्रमसे संख्यात हजार स्थितिकाण्डक व्यतीत हो जाते हैं । * तत्पश्चात् असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा होती है ।
$ ११४. इस अनन्तर पूर्व कहे गये अल्पबहुत्वविधानसे सभी कर्मोंके पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्ध और स्थितिसत्कर्मके असंख्यात गुणहानिरूपसे प्रवृत्त होनेपर पश्चात् परिणामों की प्रधानतावश वेदे जानेवाले सभी कर्मोंकी असंख्यात लोकप्रमाण प्रतिभागवाली उदीरणा नष्ट होकर असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा प्रारम्भ हो जाती है इस प्रकार यह इस सूत्रका संग्रहरूप अर्थ है । इस प्रकार असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणाको यहाँपर स्थापित करके फिर भी स्थितिबन्धासरण के साथ संख्यात हजार स्थितिसत्कर्मोके जानेपर तथा प्रत्येक स्थितिकाण्डक के अविनाभावी हजारों अनुभागकाण्डको के जानेपर उस स्थानमें जो प्रवृत्तिविशेष होता है उसका निर्देश करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है—
* तत्पश्चात् संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके जानेपर क्षपक जीव मध्यकी आठ कषायका संक्रामक होता है ।
$ ११५. क्योंकि वे आठ कषाय अप्रशस्ततर प्रकृतियाँ हैं, इसलिए विशेष घातवश उनका पहले ही क्षपणाका प्रारम्भ होनेमें निषेध नहीं है । यहाँ सूत्रमें संक्रामक ऐसा कहनेपर क्षपणाका प्रस्थापक हो जाता है यह अर्थ ग्रहण करना चाहिये । इस प्रकार इन आठ कषायोंके संक्रामणका आरम्भ करके स्थितिकाण्डक पृथक्त्वके द्वारा इनका निर्मूल संक्रामक हो जाता है इस बातका कथन करनेके प्रयोजनसे आगेके सूत्रको कहते हैं