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________________ १९९ खवगसेढीए अणियट्टिकरणे विसेसपरूवणा * तदो द्विविखंडयपुत्ते गदे एकसराहेण मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं थोवं। *णामागोवाणं हिदिसंतकम्ममसंखेजगुणं । * चउहं कम्माणं डिदिसंतकम्मं तुल्लमसंस्खेजगुणं । * तवो टिदिखंडयपुषत्तेण मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं थोवं । * णामागोवाणं हिदिसंतकम्मं असंखेजगुणं । * तिण्हं घादिकम्माणं विदिसंतकम्ममसंखेनगुणं । वेदणीयस्स हिदिसंतकम्ममसंखेवगुणं ।। * तदो हिदिखंडयपुत्तेण मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं थोवं । 8 तिण्हं घादिकम्माणं हिदिसंतकम्मं असंखेज्जगुणं । * णामागोदाणं द्विविसंतकम्ममसंखेज्जगुणं । वेदणीयस्स हिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । $ ११३. एदेसिं सुत्ताणमत्थो जहा हिदिबंधोसरणसुत्ताणं परूविदो तहा परवेयव्वो विसेसाभावादो। * तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके जानेपर एक बारमें मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे थोड़ा है। नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगणा है। * चार कोंका स्थितिसत्कर्म परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणा है। तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके द्वारा मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे अल्प है। * नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है । तीन पातिकर्मोंका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगणा है। * वेदनीयकर्गका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है। * तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके द्वारा मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे अल्प है। * तीन घातिकर्मोंका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है। नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है । - वेदनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है । $ ११३. जिस प्रकार स्थितिबन्धापसरण सूत्रोंका अर्थ कहा है उसी प्रकार इन सूत्रोंका अर्थ कहना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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