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खवगसेढीए अणियट्टिकरणे विसेसपरूवणा * तदो द्विविखंडयपुत्ते गदे एकसराहेण मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं थोवं।
*णामागोवाणं हिदिसंतकम्ममसंखेजगुणं । * चउहं कम्माणं डिदिसंतकम्मं तुल्लमसंस्खेजगुणं । * तवो टिदिखंडयपुषत्तेण मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं थोवं । * णामागोवाणं हिदिसंतकम्मं असंखेजगुणं । * तिण्हं घादिकम्माणं विदिसंतकम्ममसंखेनगुणं ।
वेदणीयस्स हिदिसंतकम्ममसंखेवगुणं ।। * तदो हिदिखंडयपुत्तेण मोहणीयस्स हिदिसंतकम्मं थोवं । 8 तिण्हं घादिकम्माणं हिदिसंतकम्मं असंखेज्जगुणं । * णामागोदाणं द्विविसंतकम्ममसंखेज्जगुणं ।
वेदणीयस्स हिदिसंतकम्मं विसेसाहियं ।
$ ११३. एदेसिं सुत्ताणमत्थो जहा हिदिबंधोसरणसुत्ताणं परूविदो तहा परवेयव्वो विसेसाभावादो।
* तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके जानेपर एक बारमें मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे थोड़ा है।
नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगणा है। * चार कोंका स्थितिसत्कर्म परस्पर तुल्य होकर असंख्यातगुणा है।
तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके द्वारा मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे अल्प है। * नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है ।
तीन पातिकर्मोंका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगणा है। * वेदनीयकर्गका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है।
* तत्पश्चात् स्थितिकाण्डकपृथक्त्वके द्वारा मोहनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म सबसे अल्प है।
* तीन घातिकर्मोंका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है।
नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिसत्कर्म असंख्यातगुणा है । - वेदनीयकर्मका स्थितिसत्कर्म विशेष अधिक है ।
$ ११३. जिस प्रकार स्थितिबन्धापसरण सूत्रोंका अर्थ कहा है उसी प्रकार इन सूत्रोंका अर्थ कहना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है।