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________________ खवगसेढीए अणियट्टिकरणे विसेसपरूवणा १८७ * तं जहा-णामागोदाणं ठिदिबंधो थोवो। णाणावरणीय-दसणावरणीय-वेदणीय-अंतराइयाणं ठिदिबंधो विसेसाहिओ। मोहणीयस्स हिदिबंधो विसेसाहिओ। ८९. सुगमो एसो अप्पाबहुअपबंधो । ण केवलमेसो चेव ठिदिबंधो एदेणप्पाबहुअविहिणा पयट्टो, किंतु अइक्कंता सव्वे वि डिदिबंधा एदेणेव कमेण पयट्टा त्ति जाणावणमिदमाह * अदिक्कता सव्वे हिदिबंधा एदेण अप्पाबहुअविहिणा गदा । ९०. तदो तेसिमंतदीवयभावेणेसो अप्पाबहुअणिद्देसो एत्थ कओ त्ति एसो एदस्स भावत्थो। * तदो णामागोदाणं पलिदोवमहिदिगे बंधे पुण्णे जो अण्णो हिदिबंधो सो संखेनगुणहीणो। सेसाणं कम्माणं हिदिवंधो विसेसहीणो। ९१. कुदो एवमेत्थ णामागोदाणं पलिदोवमद्विदिबंधादो संखेज्जगुणहाणीए द्विदिबंधोसरणपवुत्ती एक्कसराहेण जादा ति णासंकणिज्ज, सहावदो चेव एत्थ तहाउस समयके अल्पबहुत्वको कहते हैं। * वह जैसे-नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणोय, वेदनीय और अन्तरायकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। $ ८९. यह अल्पबहुत्वप्रबन्ध सुगम है । इस अल्पबहुत्वविधिसे केवल यही अल्पबहुत्व इस अल्पबहुत्वविधिसे नहीं प्रवृत्त हुआ है, किन्तु अतिकान्त सभी स्थितिबन्ध इसी क्रमसे प्रवृत्त हुए हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिये इस सूत्रको कहते हैं * अतिक्रान्त समी स्थितिबन्ध इसी विधिसे व्यतीत हुए हैं। $९०. इसलिए उन स्थितिबन्धोंके अन्तदीपकरूपसे इस अल्पबहुत्वका निर्देश यहाँपर किया है यह इस सूत्रका भावार्थ है। * तत्पश्चात् नामकर्म और गोत्रकर्मके पन्योपमप्रमाण स्थितिबन्धके सम्पन्न होनेपर जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह संख्यातगुणा हीन होता है तथा शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध विशेष हीन होता है । ६९१. शंका-इस प्रकार यहाँपर नामकर्म और गोत्रकर्मके पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धसे संख्यातगुणे हीन स्थितिकन्धके अपसरणकी प्रवृत्ति एकबारमें कैसे हो जाती है ? समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि स्वभावसे ही जीवके उस प्रकारसे १. ता०प्रतौ -ठिदिगो बंधो इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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