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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* एवं तीइंदियसमगो वीइंदियसमर्गो एइंदियसमगो जादो । ९८५. सुगमं ।
* तदो एइंदियट्ठिदिबंधसमगावो द्विदिबंधादो संखेज्जेसु ट्ठिदिबंध - सहस्सेसु गदेसु णामागोदाणं पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादो । $ ८६. सुगमं ।
* ताधे णाणावरणीय दंसणावरणीय-वेदणीय- अंतराइयाणं दिवडपलिदोवमट्ठिदिगो बंधो, मोहणीयस्स वे पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो । $ ८७. एत्थ तेरासियकमेणेदस्स ट्ठिदिबंधस्स समुप्पायणविही दट्ठव्वो । * ताधे ट्ठिदिसंतकम्मं सागरोवमसदसहस्त्रपुधत्तं ।
९ ८८. पुव्वं पि अणियकिरणपढमसमयप्पडुडि सागरोवमसदसहस्त्रपुधत्तमेत्तमेवट्ठिदिसंतकम्मं, किंतु तत्तो संखेज्जसहरसमेतट्ठिदिखंडयघादेहिं संखेज्जगुणहीणं होण अज्ज वि सागरोवमसदसहस्सपुधत्तसंखाविसये चैव वहृदि, णो हेट्ठा त्ति जाणामेदं प्रविदं ।
* जाघे णामागोदाणं पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो ताधे अप्पाबहुअं वत्तइस्लामो ।
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* इसी प्रकार तीन इन्द्रियों जीवोंके समान, द्वीन्द्रिय जीवोंके समान और एकेन्द्रिय जीवोंके समान स्थितिबन्ध हो जाता है ।
$ ८५. यह सूत्र सुगम है।
* तत्पश्चात् एकेन्द्रिय जीवोंके समान स्थितिबन्धके बाद संख्यात हजार स्थितिबन्धों व्यतीत होनेपर नामकर्स और गोत्रकर्मका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है ।
९ ८६. यह सूत्र सुगम है ।
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उसी समय ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मोका डेढ़ पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है तथा मोहनीयकर्मका दो पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है ।
$ ८७. यहाँपर त्रैराशिकक्रमसे इस स्थितिबन्धके उत्पन्न करनेकी विधि जान लेनी चाहिये । * उसी समय स्थितिसत्कर्म एक लाखपृथक्त्व सागरोपमप्रमाण होता है ।
८८. यद्यपि पूर्वमें भी अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयसे लेकर एक लाखपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण ही स्थितिसत्कर्म रहा है, किन्तु उसमेंसे संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंके घात होनेसे संख्यातगुणहीन होकर अभी भी एक लाखपृथक्त्व सागरोपमप्रमाण संख्यारूपमें ही पाया जाता है, उससे कम नहीं इस प्रकार इस बातका ज्ञान करानेके लिये यह सूत्र कहा है ।
* जिस समय नामकर्म और गोत्रकर्मका पन्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है।