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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे विहट्ठदिबंधोसरणसत्तीए जीवस्स समुप्पत्तिदंसणादो । * ताधे अप्पा बहु । णामागोदाणं द्विदिबंधो थोवो । चदुण्हं कम्माणं ट्ठिदिबंधो तुल्लो 'संखेज्जगुणो । मोहणीयस्स ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । १८८ $ ९२. सुगमं । * एदेण कमेण संखेज्जाणि ट्ठिदिबंधसहस्त्राणि गदाणि । तदो णाणावरणीय- दंसणावरणीय-वेदणीय- अंतराइयाणं पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादा । ६ ९३. सुगमं । * ताधे मोहणीयस्स तिभागुत्तरपलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादो । $ ९४. कुदो ? तीसिगाणं पलिदोवमट्ठिदिगे बंधे जादे चालीसियस्स मोहणी - यस्स तहाविहट्ठिदिबंधसिद्धीए णाइयत्तादो । * तदो अण्णो द्विदिबंधो चदुण्हं कम्माणं संखेज्जगुणहीणों । $ ९५. कुदो ? पलिदोवमट्ठिदिबंधादो हेट्ठा संखेज्जगुणहाणीए चेव ट्ठिदिबंधोसरणं होदिति नियमदंसणादो । स्थितिबन्धके अपसरणको शक्तिकी उत्पत्ति देखी जाती है । * उस समय अल्पबहुत्व - - नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे थोड़ा है | चार कर्मोंका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य होकर संख्यातगुणा है । मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । $ ९२. यह सूत्र सुगम है । * इस क्रमसे संख्यात हजार स्थितिबन्ध व्यतीत हो जाते हैं । तत्पश्चात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मोंका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है । ९३. यह सूत्र सुगम है । * उसी समय मोहनीयकर्मका तीसरा भाग अधिक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध है हो जाता 1 $ ९४. क्योंकि तीसिय प्रकृतियोंके पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जानेपर चालीसिय मोहनीयकर्मके उसी प्रकारसे सिद्धि न्यायप्राप्त है । * तत्पश्चात् अन्य स्थितिबन्धके अनुसार चार कर्मोंका संख्यातगुणा हीन स्थितिबन्ध होता है । $ ९५. क्योंकि पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध से नीचे संख्यातगुणी हानिरूपसे ही स्थितिबन्धका अपसरण होता है ऐसा नियम देखा जाता है । १. आ० प्रती असंखेज्जगुणो इति पाठः । २. क० प्रती संखेज्जगुणहीणं इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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