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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
विहट्ठदिबंधोसरणसत्तीए जीवस्स समुप्पत्तिदंसणादो ।
* ताधे अप्पा बहु । णामागोदाणं द्विदिबंधो थोवो । चदुण्हं कम्माणं ट्ठिदिबंधो तुल्लो 'संखेज्जगुणो । मोहणीयस्स ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ।
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$ ९२. सुगमं ।
* एदेण कमेण संखेज्जाणि ट्ठिदिबंधसहस्त्राणि गदाणि । तदो णाणावरणीय- दंसणावरणीय-वेदणीय- अंतराइयाणं पलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादा ।
६ ९३. सुगमं ।
* ताधे मोहणीयस्स तिभागुत्तरपलिदोवमट्ठिदिगो बंधो जादो । $ ९४. कुदो ? तीसिगाणं पलिदोवमट्ठिदिगे बंधे जादे चालीसियस्स मोहणी - यस्स तहाविहट्ठिदिबंधसिद्धीए णाइयत्तादो ।
* तदो अण्णो द्विदिबंधो चदुण्हं कम्माणं संखेज्जगुणहीणों ।
$ ९५. कुदो ? पलिदोवमट्ठिदिबंधादो हेट्ठा संखेज्जगुणहाणीए चेव ट्ठिदिबंधोसरणं होदिति नियमदंसणादो ।
स्थितिबन्धके अपसरणको शक्तिकी उत्पत्ति देखी जाती है ।
* उस समय अल्पबहुत्व - - नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे थोड़ा है | चार कर्मोंका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य होकर संख्यातगुणा है । मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।
$ ९२. यह सूत्र सुगम है ।
* इस क्रमसे संख्यात हजार स्थितिबन्ध व्यतीत हो जाते हैं । तत्पश्चात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मोंका पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है ।
९३. यह सूत्र सुगम है ।
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उसी समय मोहनीयकर्मका तीसरा भाग अधिक पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध है
हो जाता
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$ ९४. क्योंकि तीसिय प्रकृतियोंके पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध हो जानेपर चालीसिय मोहनीयकर्मके उसी प्रकारसे सिद्धि न्यायप्राप्त है ।
* तत्पश्चात् अन्य स्थितिबन्धके अनुसार चार कर्मोंका संख्यातगुणा हीन स्थितिबन्ध होता है ।
$ ९५. क्योंकि पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध से नीचे संख्यातगुणी हानिरूपसे ही स्थितिबन्धका अपसरण होता है ऐसा नियम देखा जाता है ।
१. आ० प्रती असंखेज्जगुणो इति पाठः । २. क० प्रती संखेज्जगुणहीणं इति पाठः ।