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खवगसेढीए तदियसुत्तगाहाए अवयवत्थपरूवणा
* 'के से भीयदे पुव्वं बंधेण उदएण वा' त्ति विहासा । $ ३५. सुगमं । तत्थ ताव बंघेण वोच्छिण्णपयडीणं पुव्वमेव णिद्देसं कुणमाणो उत्तरसुत्तमाह—
* थीणगिद्धितियमसाद-मिच्छत्त- बारसकसाय- अरदि-सोग - इत्थिवेदणवंसयवेद-सव्वाणि चेव आउआणि परियत्तमाणियाओ णामाओ असुहाओ सव्वाओ चेव मणुसगह-ओरालिय सरीर-ओरालिय सरीरं गोवंग वज्जरि सहसंघडण - मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वी, आदाबुज्जोव - णामाओ च सुहाओ णीचागोदं च एदाणि कम्माणि बंधेण वोच्छिष्णाणि ।
$ ३६. एत्थ णाणावर्णीयस्स पंचण्डं पि पयडीण बंधो अस्थि ति तत्थ एक्कस्स वि बंधवोच्छेदो ण परूविदो । दंसणावरणीयस्स थीणगिद्धितियं पुव्वमेव बंधेण वोच्छिण्णं, सासणसम्माइट्ठीदो उवरि तस्स बंधासंभवादो । वेदणीए असादस्स बंधवोच्छेदो, पमत्तगुणट्ठाणादो उवरि तस्स बंधाभावादो । मोहणीयस्स मिच्छत्त - बारसकसाय - अरदि- सोग - इत्थि - णव सयवेदाणं बंधवोच्छदो, पुव्वमेव एदेसिं हेट्टिमगुणट्ठाणेसु जहासंभवं बंधवोच्छेददंसगादो । आउअस्स सव्वाणि चेव आउआणि बंधेण वोच्छिण्णाणि तम्बधवियमुल्लंघियूणेदस्स खवगसेढिपाओग्गअधापवत्तकरण विसोहीसु वट्ट
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* बन्ध और उदयकी अपेक्षा पहले कौन प्रकृतियां व्युच्छिन्न होती हैं इस पदकी विभाषा ।
$ ३५. यह सूत्र सुगम है । वहाँ सर्वप्रथम बन्धसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियोका निर्देश करते हुए आगे सूत्रको कहते हैं
* स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व, बारह कषाय, अरति, शोक, स्त्रीवेद, नपुंसक - वेद, सभी आयुकर्म, परिवर्तमान सभी अशुभ नामकर्मकी प्रकृतियां, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिक आंगोपांग, वज्रर्षभनाराच संहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आतप और उद्योत ये नामकर्मकी शुभ प्रकृतियां तथा नीचगोत्र ये कर्म बन्धसे व्युच्छिन्न हो जाते हैं ।
$ ३६. ज्ञानावरणीयकी पांचों हो प्रकृतियोंका बन्ध है, इसलिए प्रकृतमें उसकी एक भी प्रकृतिकी बन्धव्युच्छित्ति नहीं कही है। दर्शनावरणीयको स्त्यानगृद्धि आदि तीन प्रकृतियाँ पहले ही बन्धसे व्युच्छिन्न हो गई हैं, क्योंकि सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थानके बाद उनका बन्ध नहीं होता । वेदनीयकी असाताप्रकृतिकी बन्ध व्युच्छित्ति हो गई है, क्योंकि प्रमत्तसंयत गुणस्थानके बाद उसका बन्ध नहीं होता । मोहनीय कर्मके मिथ्यात्व, बारह कषाय, अरति, शोक, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी पहले ही बन्धव्युच्छित्ति हो जाती है, क्योंकि इन प्रकृतियोंकी यथासम्भव नीचेके गुणस्थानोंमें बन्धव्युच्छित्ति देखी जाती है । आयुकर्मकी अपेक्षा सभी आयुकर्म बन्धसे विच्छिन्न हैं, क्योंकि उनके बन्धयोग्य स्थानको उल्लंघन कर यह क्षपकश्रेणिके योग्य अधःप्रवृत्तकरणसम्बन्धी विशुद्धियों में १. ता० प्रती ओरालियसरीर इति पाठो नास्ति ।