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________________ भाग-14 खवगसेढीए तदियसुत्तगाहाए अवयवत्थपरूवणा * 'के वा अंसे णिबंधदि' त्तिविहासा । $ २८. सुगमं । * एत्थ पयडिबंधो ट्ठिदिबंधो अणुभागबंधो पदेसबंधो च मग्गि यव्वो । $ २९. एदस्सत्थे भण्णमाणे जहा उवसामगस्स पयदमग्गणा कया, तहा एत्थ वि कायव्वा, विसेसाभावादो । * 'कदि आवलियं पविसंति' त्तिविहासा । ३०. सुगमं । * मूलपयडीओ सव्वाओ पविसंति । १६१ S३१. कुदो ? मूलपयडीणं सव्वासि पि एत्थुदयावलियपवेसस्स पडिबंधाभावादो । * उत्तरपयडीओ वि जाओ अत्थि ताओ पविसंति । $ ३२. सम्वासिमेवुत्तरपयडीणमेत्थ विज्जमाणाणमुदयाणुदयसरूवेणुदयावलिय पवेसस्स पडिबंधाभावादो । * 'कदिहं वा पवेसगो' त्ति विहासा । * किन कर्मोंको बांधता है इस पदकी विभाषा । $ २८. यह सूत्र सुगम है । * यहां प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्धका अनुसन्धान करना चाहिये । $ २९. इसका अर्थ कहनेपर जिस प्रकार उपशामकके प्रकृत अर्थकी मार्गणा की उसी प्रकार यहाँ भी करनी चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई भेद नहीं है । * कितनी प्रकृतियां उदयावलिमें प्रवेश करती हैं इस पदकी विभाषा । $ ३०. यह सूत्र सुगम है । * मूल प्रकृतियां सभी प्रवेश करती हैं । $ ३१. क्योंकि यहाँ पर सभी मूल प्रकृतियोंक उदयावलिमें प्रवेश करनेमें कोई रुकावट नहीं है । * उत्तर प्रकृतियां भी जो हैं वे प्रवेश करती हैं । $ ३२. उदय-अनुदयरूपसे विद्यमान सभी उत्तर प्रकृतियोंका यहाँपर उदयावलिमें प्रवेश होने में कोई रुकावट नहीं है । * किन प्रकृतियोंका प्रवेशक होता है इस पदकी विभाषा । २१
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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