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________________ खवगसेढिजोग्गो को होदि त्ति णिद्देसो १५७ किमेदस्स कसायपरिणामो वड्डमाणो, किं वा हायमाणो त्ति आसंकाए इदमाह * किं वड्डमाणो हायमाणो ? णियमा हायमाणो। १७. हायमाणो चेव कसायपरिणामो एदस्स होइ; ण वड्डमाणो । किं कारणं ? विसोहिपरिणामस्स वड्डमाणकसाएण सह विरुद्धसहावत्तादो । * उवजोगेत्ति विहासा।। $ १८. को उवजोगो णाम ? आत्मनोऽर्थग्रहणपरिणाम उपयोगः । सो वुण दुविहो, सागारोवजोगो अणागारोवजोगो' चेदि । तत्थ सागारोवजोगो मदिणाणादिभेदेण अट्ठविहो । अणागारोवजोगो चक्खुदंसणादिमेएण चउव्विहो । एवमेदेसु उवजोगवियप्पेसु कदरेण उवजोगेण उवजुत्तो खवगसेढिमारोहदि त्ति एदस्स णिण्णयजणणट्ठमुवजोगेत्ति गाहावयवस्स विहासा एण्हि कायव्वा त्ति भणिदं होदि । संपहि उवएसभेदमस्सियूण एदस्स विहासणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ * एको उवएसो णियमा सुदोवजुत्तो। १९. णियमा सुदोवजुतो होदूण खवगसेटिं चडदि त्ति । एसो ताव एक्को अब इसके यह कषायपरिणाम क्या वर्धमान होता है या हीयमान ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्रको कहते हैं * क्या वर्धमान कषायपरिणाम होता है या हीयमान ? नियमसे हीयमान कषायपरिणाम होता है। $ १७. इसके हीयमान ही कषायपरिणाम होता है, वर्धणन नहीं, क्योंकि विशुद्धिरूप परिणाम वर्धमान कषायके विरुद्ध स्वभाववाला है। * उपयोग इस पदकी विभाषा । $ १८. शंका-उपयोग किसे कहते हैं ? समाधान-आत्माके पदार्थको ग्रहण करनेरूप परिणामको उपयोग कहते हैं। वह उपयोग दो प्रकारका है—साकार उपयोग और अनाकार उपयोग । उनमेंसे साकार उपयोग मतिज्ञानादिके भेदसे आठ प्रकारका है तथा अनाकार उपयोग चक्षुदर्शन आदिके भेदसे चार प्रकारका है। इन उपयोगोंमेंसे किस उपयोगसे उपयुक्त होकर यह जीव क्षपकश्रेणिपर आरोहण करता है इस प्रकार इसका निर्णय करनेके लिये 'उवजोगो' गाथाके इस पदकी इस समय व्याख्या करनी चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है। अब उपदेशभेदका अवलम्बन लेकर इस पदको विभाषा करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं एक उपदेश है कि नियमसे श्रुतज्ञानसे उपयुक्त होता है। पर ही ६१९. नियमसे श्रुतज्ञानसे उपयुक्त होकर क्षपकश्रेणिपर चढ़ता है इस प्रकार यह एक १. आ प्रती -रोवजुत्तो इति पाठः । २. क.प्रतो "णियमा सुदोवजुत्तो होदूण खवगसेढिं चढदि इति वाक्यं सूत्रांशरूपेण उद्धृतम् ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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