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________________ खवगसेढिजोग्गो को होदि त्ति णिद्देसो परिणामो होदि त्ति परूवणं विहासा णाम । सा एण्हि कायव्या त्ति भणिदं होइ ।। * तं जहा। ११. सुगमं । * परिणामो विसुद्धो पुव्वं पि अंतोमुहुत्तप्पहुडि विसुज्झमाणो आगदो अणंतगुणाए विसोहीए । १२. विसुद्धो चेव परिणामो एदस्स होइ ति एदेण सुत्तावयवेण असहपरिणामाणं वदासं कादूण सुह-सुद्धपरिमाणं चेव एत्थ संभवो त्ति जाणाविदं । ण केवलमेदम्मि चेव अधापवत्त करणचरिमसमए विसुद्धपरिणामो एदस्स जादो; किंतु पुव्वं पि अधापवत्तकरणपारंभादो हेट्ठा अंतोमुहुत्तप्पहुडि खवगसेढिपाओग्गविसोहीए पडिसमयमणंतगुणाए विसुज्झमाणो चेव आगदो; सुहपरिणामपणालीए विणा एक्कसराहेणेव सुविसुद्धपरिणामेण परिणमणासंभवादो ति एसो एत्थ सुत्तत्थसम्भावो । एवमेदेण गाहापुबद्धण परिणामविसेसमेदस्स णिरूविय संपहि गाहापच्छद्धमस्सियूण जोगकसायोवजोगादिविसेसमेदस्स परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भगइ * जोगेत्ति विहासा। १३. सुगमं ? होता है इसका नाम विभाषा है । वह इस समय करनी चाहिये यह उक्त कथनका तात्पर्य है। . * वह जैसे । 5 ११. यह सूत्र सुगम है। * परिणाम विशुद्ध होता है तथा अन्तर्मुहूर्त पहलेसे ही अनन्तगुणी विशुद्धिके के द्वारा विशुद्ध होता हुआ आया है। १२. चारित्रमोहनोयको क्षपणाका प्रारम्भ करनेवाले जीवका परिणाम विशुद्ध ही होता है इस प्रकार इस सूत्रवचनसे अशुभ परिणामोंका व्युदास करके शुभ-शुद्ध परिणाम ही यहाँपर सम्भव है इस बातका ज्ञान कराया गया है। केवल इस अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें ही इसका विशुद्ध परिणाम हो गया है, किन्तु अधःप्रवृत्तकरणके प्रारम्भ करनेके पूर्व ही नीचे अन्तर्मुहूर्तसे लेकर क्षपकश्रेणिके योग्य विशुद्धिका आलम्बन लेकर प्रत्येक समयमें अनन्तगुणी विशुद्धिसे विशुद्ध होता हुआ ही आया है, क्योंकि शुभपरिणामको प्रणालीके बिना एक बारमें ही सुविशुद्ध परिणामरूपसे परिणमन असम्भव है इस प्रकार इस अर्थका सद्भाव यहाँपर स्वीकार किया गया है। इस प्रकार इस गाथासूत्रके पूर्वाधं द्वारा इस जीवके परिणामविशेषका प्ररूपण करके अब गाथाके उत्तरार्धका अवलम्बन कर इस जीवके योग, कषाय और उपयोग आदि विशेषका कथन करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं योग इस पदकी विभाषा । $ १३. यह सूत्र भी सुगम है।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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