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उवसमसेढीए अप्पाबहुअपरूवणा . $ ३५५. एवं भणिदे जम्मि पलिदोवमडिदिबंधादो संखेज्जे भएो हाइण पलिदो० संखे०भागिओ पढमो द्विदिबंधो जादो सो गहेयन्वो ।
*णाणावरण-दसणावरण-घेवणीय-अंतराइयाणं पलिदोवमस्स संखेज्जविभागिगो पढमो द्विदिषंधो विसेसाहियो ।
३५६. एसो वि पुव्वुत्तविसये व गहिदो, किंतु अप्पणो पडिभागेण विसेसाहिओ जादो । केत्तियमेत्तो विसेसो ? दुभागमेत्तो।
* मोहणीयस्स पलिदोवमस्स संखेवदिभागिगो पढमो हिदिबंधो विसेसाहिओ। ____३५७. एसो वि पुश्वुत्तविसए चेव गहेयव्वो। गवरि द्विदिविसेसमस्सियूण विसेसाहिओ जादो । केत्तियमेत्तो विसेसो ? तिभागमेत्तो।
* परिमहिदिखंडयं संखेजगुणं ।
$ ३५८. एवं भणिदे गाणावरणादिकम्माणं सुहुमसासराइयचरिमट्ठिदिखंडयस्स गहणं कायव्वं । मोहणीयस्स पुण अंतरकरणसमकालभाविओ चरमट्ठिदिखंडओ गहेयन्वो । एसो वि पलिदोवमस्स संखेज्जभागमेतो व होदण पुग्विल्लादो संखेज्ज
$३५५. ऐसा कहनेपर पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धसे संख्यात बहुभागको कम कर जिस स्थानमें पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण प्रथम स्थितिबन्ध हो जाता है उसे ग्रहण करना चाहिये ।
* ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तरायकर्मोंका पन्योपमके संख्यातवें मागप्रमाण प्रथम स्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
$ ३५६. इसे भी पूर्वोक्त स्थानमें ही ग्रहण करना चाहिये, किन्तु अपने प्रतिभागके अनुसार विशेष अधिक हो जाता है।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-विशेषका प्रमाण द्वितीय भाग है।
* मोहनीयकर्मका पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण प्रथम स्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
६३५७. इसे भी पूर्वके स्थानमें ही ग्रहण करपा चाहिये । इतनी विशेषता है कि स्थितिविशेषकी अपेक्षा यह विशेष अधिक हो जाता है।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-तीसरे भागप्रमाण विशेष है। * अन्तिम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है।
६३५८. ऐसा कहनेपर सूक्ष्मसाम्परायिक जीवके ज्ञानावरणादि कर्मोके अन्तिम स्थितिकाण्डकको ग्रहण करना चाहिये । परन्तु मोहनीयकके अन्तरकरणके समान कालमें होनेवाले अन्तिम स्थितिकाण्डकको ग्रहण करना चाहिये । यह भी पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होकर ही