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________________ १३९ उवसमसेढीए अप्पाबहुअपरूवणा $३४७. किं कारणं ? सत्तणोकसायाणमुबसामणद्धाए संखेज्जदिभागविसये एदेसि संखेज्जवस्सियपढमट्ठिदिबंधस्स विसेसघादेण विणा समुप्पत्तिसणादो । * पडिवदमाणगस्स गामागोदवेदणीयाणं चरिमो संखेजवस्सद्विदिओ बंधों संखेजगुणो। ६३४८. सुगमं । * उवसामगस्स चरिमो असंखेनवस्सहिदिगो बंधो मोहणीयस्स असंखेजगुणो । ३४९. किं कारणं ? अंतरकरणद्धासमकालभाविद्विदिबंधस्स असंखेज्जवस्ससहस्सपमाणस्स एत्थ गहणादो। * पडिवदमाणगस्स पढमो असंखेजवस्सहिदिगो बंधो मोहणीयस्स असंखजगणो। ६ ३५०. किं करणं ? अणंतरपरूविदविसयमंतोमुहुत्तेण पत्तस्सेव पडिवादपाहम्मेण पुम्विन्लादो असंखेज्जगुणमेत्तहिदिबंधस्स पत्तिदंसणादो । * उवसामगस्स घादिकम्माणं चरिमो असंखेनवस्सहिदिगो बंधो असंखेजगुणो। ३५१. कत्थ एसो घेत्तव्यो ? इत्थिवेदोवसामणद्धाए संखेज्जदिभागं गंतूण ३४७. क्योंकि सात नोकषायोंके उपशामनाकालके संख्यातवें भागरूप स्थानमें इन कर्मोंके संख्यात वर्षप्रमाण प्रथम स्थितिबन्धको विशेष घातके बिना उत्पत्ति देखी जाती है। गिरनेवाले जीवके नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोंका अन्तिम संख्यात वर्षकी स्थितिवाला बन्ध संख्यातगुणा है। ६३४८. यह सूत्र सुगम है । * उपशामक जीवके मोहनीयकर्मका असंख्यात वर्षकी स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। $ ३४९. क्योंकि अन्तरकरणकालके समान कालमें होनेवाले असंख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्धको यहाँ ग्रहण किया है। * गिरनेवाले जीवके मोहनीयकर्मका असंख्यात वर्षप्रमाण प्रथम स्थितिबन्ध असंख्यातगणा है। ३५०. क्योंकि अनन्तर कहे गए स्थानको अन्तर्मुहूर्तके द्वारा प्राप्त हुए जीवके ही पतनके माहात्म्यवश पूर्व स्थानसे असंज्यातगुणित स्थितिबन्धकी प्रवृत्ति देखी जाती है। * उपशामक जीवके घातिकर्मोंका अन्तिम असंख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। ६ ३५१. शंका-इसे कहां ग्रहण करना चाहिये ?
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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