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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * पडिवदमाणगस्स चरिमो संखेज्जवस्सट्ठिदिगो मोहणीयस्स ट्ठिदिबंथो संखेज्जगुणो । $ ३४४· किं कारणं ? पडिवदपा हम्मेण तस्स तहाभावसिद्धीए बाहाणुवलंलादो । जहा अइकंतसव्वसंधीसु चडमाणट्ठिदिबंधादो ओदरमाणट्ठिदिबंधो समाणविसये दुगुणो जादो ण तहा एत्थ दुगुणत्तणियमो । किंतु तप्पा ओग्गसंखेज्जरूवमेत्तो गुणगारो एत्थ घेत्तव्वो । एत्तो पाये संखेज्जवस्सियद्विदिबंधसंधीए संखेज्जगुणो असंखेज्जवस्सियद्विदिबंधसंधी असंखेज्जगुणो त्ति पडिवदमाणविसयट्ठिदिबंधस्स पवत्तिदंसणादो । १३८ * उवसामगस्स णाणावरण दंसणावरण- अंतराइयाणं पढमो संखेजवस्सट्ठिदिगो बंधो संखेज्जगुणो । $ ३४५. कुदो ? मोहणीयस्सेव एदेसिं सुट्ठ ट्ठिदिबंधोसरणासंभवादो । * पडिवदमाणयस्स तिन्हं घादिकम्माणं चरिमो संखेज्जबस्सट्ठिदिगो बंध संखेजगुणो । $ ३४६. सुगमं । * उवसामगस्स णामागोदवेदणीयाणं पढमो संखेज्जवस्सट्ठिदिगो बंधो संखेज्जगुणो । होनेवाले संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्धका प्रकृतमें ग्रहण किया है । * गिरनेवाले जीवके मोहनीयकर्मका संख्यात वर्षप्रमाण अन्तिम स्थितिवाला स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । $ ३४४. क्योंकि पतनके माहात्म्यवश उसके उक्त प्रकारसे सिद्ध होनेमें कोई बाधा नहीं पाई जाती । जिस प्रकार व्यतीत हुए सभी सन्धिस्थानों में चढ़नेवाले के स्थितिबन्धसे उतरनेवालेका स्थितिबन्ध समान स्थानमें दुगुणा हो जाता है उस प्रकार यहाँ दुगुणेपनका नियम नहीं है । किन्तु तत्प्रायोग्य संख्यात अंकप्रमाण गुणकार यहाँ ग्रहण करना चाहिये । यहाँसे लेकर संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्धविषयक सन्धिमें संख्यातगुणा और असंख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्धविषयक सन्धिमें असंख्यातगुणा गुणकार होता है, इस प्रकार गिरनेवालेके स्थितिबन्धकी प्रवृत्ति देखी जाती है । * उपशामक जीवके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मोंका प्रथम संख्यात वर्षकी स्थितिवाला बन्ध संख्यातगुणा है । $ ३४५. क्योंकि मोहनीयकर्मके समान इनके अति बड़ा स्थितिबन्धापसरण असम्भव हैं । * गिरनेवाले जीवके तीन घातिकमका अन्तिम संख्यात वर्षकी स्थितिवाला बन्ध संख्यातगुणा है । ९ ३४६. यह सूत्र सुगम है । * उपशामक जीवके नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मोंका प्रथम संख्यात वर्षकी स्थितिवाला बन्ध संख्यातगुणा है ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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